भोपाल, नवदुनिया प्रतिनिधि। मध्य प्रदेश के पांच लाख कुम्हार परिवारों की जिंदगी में फिर से उम्मीदें जाग गई हैं। मिट्टी के बर्तन बनाने का पुश्तैनी काम फिर पटरी पर लौटेगा। ये उम्मीदें रेलमंत्री पीयूष गोयल के उस ट्वीट के बाद जागी हैं जिसमें रविवार को उन्होंने कहा है कि रेलवे स्टेशनों पर यात्रियों को कुल्हड़ में चाय पिलाएंगे। स्वभाविक है कुल्हड़ कुम्हार बनाते हैं और स्टेशनों पर इनका उपयोग शुरू हुआ तो इनकी खपत बढ़ेगी। कुम्हार परिवारों को काम मिलेगा। एक अनुमान के मुताबिक मप्र के जबलपुर, भोपाल व रतलाम रेल मंडल के 316 बड़े-छोटे स्टेशनों पर सामान्य दिनों में 2 लाख और महीने में 60 लाख कागज के कपों की खपत है, जिनकी जगह कुल्हड़ लेंगे।
पेड़ कटने से बचेंगे
रेलवे स्टेशनों पर अभी डिस्पोजेबल कागज कप उपयोग किए जा रहे हैं। एक कप न्यूनतम 50 पैसे का पड़ता हैं। भोपाल वन वृत्त में मुख्य वन संरक्षक रह चुके डॉ. एसपी तिवारी कहते हैं कि कुल्हड़ का चलन बढ़ा तो कागज के कपों की जरूरत खत्म होगी। पेड़ों को काटने की जरूरत नहीं पड़ेगी और इससे पर्यावरण संरक्षित होगा।
कागज के कप से सेहत का नुकसान
कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉक्टर टीपी साहू ने बताया कि कागज के कपों में अंदरुनी सतहों पर चिकनाई रखने के लिए वैक्स का उपयोग किया जाता है, जो गर्म चाय के साथ शरीर के अंदर जाकर नुकसान करता है। इससे कैंसर होने की पुष्टि तो नहीं है। फिर भी यह स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है।
फिर बंधी आस
मप्र माटी कला बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष व प्रजापति राष्ट्रीय महासंघ के उपाध्यक्ष रामदयाल प्रजापति का दावा है कि मप्र में कुम्हार समाज की संख्या 45 लाख है। मिट्टी के बर्तनों को बाजार नहीं मिला तो लाखों लोगों ने काम बंद कर दिया। अभी 5 लाख लोग कुम्हारी का काम करते हैं। लालू यादव के रेलमंत्री रहते कुल्हड़ में चाय की पहल के बाद अब फिर आस बंधी है। एक कुल्हड़ बनाने में एक से डेढ़ रुपये का खर्च आता है।
किस मंडल में कितने स्टेशन
भोपाल - 92
रतलाम - 119
जबलपुर - 105
वर्जन
रेलवे बोर्ड से दिशा-निर्देश मिलते ही जोन के स्टेशनों पर कुल्हड़ उपलब्ध कराने की व्यवस्था कराएंगे। यह अच्छी पहल है पर्यावरण बचेगा, हजारों परिवारों के लिए स्वरोजगार के अवसर खुलेंगे। - शोभन चौधुरी, एजीएम पश्चिम मध्य रेलवे जबलपुर जोन