भोपाल, नवदुनिया प्रतिनिधि। ऑल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (एम्स) भोपाल में बच्चेदानी की सर्जरी लेप्रोस्कोपिक तकनीक से शुरू कर दी गई है। महीनेभर के भीतर इस तकनीक से 7 ऑपरेशन किए गए हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि मरीज को सिर्फ एक दिन अस्पताल में रुकना पड़ता है। लेप्रोस्कोपिक तकनीक से सर्जरी करने वाला एम्स प्रदेश का पहला सरकारी अस्पताल है।
अभी भोपाल के कुछ निजी अस्पतालों में ही लेप्रोस्कोपिक सर्जरी की सुविधा है। इस तकनीक में बच्चेदानी निकालने के लिए पेट में लेप्रोस्कोप से चार-पांच छेद किए जाते हैं। इन्हीं के जरिए बच्चेदानी निकाली जाती है। मरीज को सर्जरी के एक दिन पहले भर्ती किया जाता है। इस दौरान ऑपरेशन के पहले की उसकी पूरी तैयारी की जाती है। ऑपरेशन के बाद मरीज को अधिकतम दो घंटे तक ही रुकना पड़ता है।
इससे मरीजों को बड़ा फायदा हो गया है। जबकि साधारण सर्जरी से बच्चेदानी निकालने के लिए मरीज को कम से कम आठ दिन के लिए अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है। पेट में लंबा चीरा लगाया जाता है, जिसमें कम से कम आठ टांके लगते हैं। इस सर्जरी में दिक्कत उन महिलाओं के साथ ज्यादा होती है, जिन्हें पहले से ऑपरेशन से डिलेवरी हुई है। इन महिलाओं को गायनकोलॉजिस्ट लेप्रोस्कोपिक तकनीक से सर्जरी कराने की सलाह देते हैं।
निजी अस्पतालों में 60 हजार खर्च, एम्स में 500 रुपए
निजी अस्पतालों में लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में करीब 60 से 70 हजार रुपए खर्च होते हैं। एम्स में महज 500 रुपए में सर्जरी की जा रही है। हमीदिया और जेपी अस्पताल में अभी यह सुविधा नहीं है। इसके लिए लेप्रोस्कोप के साथ ही डॉक्टर की ट्रेनिंग की जरूरत है।
महिलाओं में बच्चेदानी में होने वाली बीमारियों को लेकर डर बढ़ा है। उन्हें समझाया जाता है कि दवा से बीमारी ठीक हो जाएगी। फिर भी वे ऑपरेशन के लिए दबाव बनाती हैं। अब बीमारी भी आसानी से पता चलती है। साधारण सोनोग्राफी से ही पता चल जाता है कि ट्यूमर तो नहीं है।
डॉ. श्रद्घा अग्रवाल, गायनकोलाजिस्ट, जेपी अस्पताल
लेप्रोस्कोपिक तकनीक से बच्चेदानी के ऑपरेशन की सुविधा शुरू कर दी गई है। दूसरे विभागों में भी लेप्रोस्कोप सर्जरी की जा रही है। इस तकनीक में मरीज को ज्यादा परेशानी नहीं होती।
डॉ. नितिन एम नागरकर, डायरेक्टर, एम्स भोपाल