भोपाल (नवदुनिया प्रतिनिधि)। मध्य प्रदेश के पॉलिटेक्निक और सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रोग्रामर के तौर पर नियुक्त हुए लोग तकनीकी शिक्षा विभाग द्वारा गलत मतलब निकालकर आदेश जारी करने के कारण पांच साल में ही प्रोफेसर बन गए है। इतना ही नहीं इन्हें वरिष्ठ प्रोफेसरों की तरह ही वेतनमान भी मिलना शुरू हो गया है। हालांकि इसमें से कुछ का प्रोफेसर बनना अभी बाकी, लेकिन 2009-10 में तकनीकी शिक्षा संचालक के एक आदेश से विभाग को हर साल 85 लाख स्र्पये का अतिरिक्त नुकसान हो रहा है।
दरअसल, प्रोग्रामर सभी पॉलिटेक्निक और इंजीनियरिंग कॉलेजों में राज्य शासन के तहत द्वितीय श्रेणी के अफसर है। इनका 2009 में संविलियन किया गया। इस संविलियन का आदेश एआइसीटीई के अनुसार किया जाना था लेकिन एआइसीटीई के अनुसार इनका ग्रेड पे नहीं था। लिहाजा विभाग को सबसे लोअर वेतनमान दिया जाना उचित था, लेकिन तत्कालीन तकनीकी शिक्षा संचालक से जब इस संबंध में आदेश जारी किया तो सबसे अधिक वेतनमान के हिसाब से इन्हें वेतन दिया जाने लगा। गफलत यह रही कि प्राचार्यों द्वारा सबसे न्यूनतम ग्रेड पे 6000 पर रखने के लिए दिलचस्पी लेने के बावजूद संबंधित प्राचार्यों ने लिखा कि न्यूनतम ग्रेड पे ही दिया जाना चाहिए, लेकिन संचालनालय ने गफलत में आदेश जारी कर दिया कि अधिक 7000 ग्रेड पे देने के लिए उचित कार्रवाई करें। इसी का फायदा उठाकर व्याख्याताओं ने आगे का वेतनमान लेकर पांच साल में ही प्रोफेसर का वेतनमान पा लिया। इससे विभाग को एक व्यक्ति से ढाई लाख स्र्पये प्रति माह हानि शासन को हो रही हैं। महिला पॉलिटेक्निक भोपाल में भी इस तरह नियमों को ताक में रखकर कार्रवाई की जा रही है। अज्ञात शिकायतकर्ता का कहना है कि अगर इनसे रिकवरी की जाए तो सातवें वेतनमान का पैसा निकल सकता है। बता दें कि पूर्व में पीएचडी का लाभ देने के लिए भी विभाग ने एआईसीटीई के नियमों का गलत तरीके से उपयोग किया था।