
धनंजय प्रताप सिंह, नईदुनिया भोपाल। डॉ. मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने प्रदेश में बदलाव के जिस दौर की शुरुआत की थी, उसमें कांग्रेस को मजबूत विपक्ष बनाने की भी सारी संभावनाएं निहित थीं, लेकिन बीते डेढ़ वर्षों में कांग्रेस पहले से भी कमजोर दिखाई पड़ रही है। जनहित, अपराध, महंगाई जैसे मुद्दों को लेकर वह न सड़क पर मजबूती से उतर पा रही है, न विधानसभा में सरकार को घेरने में कामयाब दिखाई दी है।
बीते माह भोपाल आए राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर तंज कसते हुए 'नरेन्दर-सरेंडर' का विवादित बयान दिया था, लेकिन उनके लौटते ही कांग्रेस पुराने ढर्रे पर आ गई।

भाजपा के अंदरूनी समीकरण में स्पष्ट है कि डा. मोहन यादव विधायक दल से लेकर कैबिनेट तक पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री जैसे मजबूत होने का प्रयास कर रहे हैं, यह किसी से छुपा नहीं है। कई अवसरों पर अपने बयानों से मंत्रियों और विधायकों ने सरकार और संगठन की फजीहत कराई है। शिकवे-शिकायतों का दौर भी थम नहीं रहा है।
ऐसे मौके विपक्ष के लिए अलग तरीके से बड़े अवसर पैदा करते हैं, लेकिन जीतू पटवारी और उनकी टीम इस दिशा में कोई सफलता प्राप्त नहीं कर सकी है। 90 डिग्री कोण वाले पुल के निर्माण कार्यों में तकनीकी खामी को लेकर भी कई मामले सामने आए। इंटरनेट मीडिया पर इसे पूरे देश ने देखा। अंततः मुख्यमंत्री को आगे जाकर कार्रवाई करनी पड़ी, लेकिन कांग्रेस इस पूरे मामले पर आगे आने के बजाय दर्शक ही बनी रही।
विंध्य क्षेत्र में गांवों में सड़क न होने से महिलाओं, विशेषकर गर्भवती के लिए दुविधा को लेकर इंटरनेट मीडिया पर कई वीडियो वायरल हुई। जनता ने वीडियो बनाकर वायरल किया और सांसद से सीधा मोर्चा लिया। कांग्रेस इस मामले में साथ भी आई, लेकिन प्रभावशाली तरीके से नागरिकों के सामने नहीं रख सकी।
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ हमेशा कहते रहे हैं कि कांग्रेस में नेता ज्यादा हैं, कार्यकर्ता कम। जीतू पटवारी अब तक जितने प्रदर्शन कर चुके हैं, उसमें संख्या बल की कमी उनके उत्साह को चोट पहुंचाती है। कांग्रेस का मुकाबला उस भाजपा से रहा है, जो हमेशा इलेक्शन मोड में रहती है, लेकिन कांग्रेस अभी तैयारी मोड में ही नहीं दिखाई देती।
युवाओं, महिलाओं, मजदूर और कमजोर वर्ग को जोड़ने में कांग्रेस की दिलचस्पी नहीं दिखाई दे रही है। ऐसे वर्गों के मुद्दे उठाने के लिए विधानसभा सदन से बेहतर कौन सी जगह हो सकती है, लेकिन सदन में भी कांग्रेस 'भैंस के आगे बीन बजाने ' जैसे अनूठे प्रदर्शन तक ही सीमित है।
कोई शक नहीं है कि बीते वर्षों में आमदनी के मुकाबले खर्चे में बढ़ोतरी हुई है। गरीब और मध्यम आय वर्ग के लिए गुजर-बसर आसान नहीं रहा। ऐसे मुद्दों को कांग्रेस गंभीरता से उठाने में चूक कर रही है। कांग्रेस की यही सरेंडर मुद्रा मोहन सरकार के लिए 2028 तक का सफर तय करने का सरपट रास्ता तैयार कर रही है।