
राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, भोपाल: शिवपुरी जिले में सुगरा जाति के आदिवासियों को वनाधिकार पत्र देने में घोटाला सामने आया है। गूगल इमेजनरी से यह मामला पकड़ में आया है। दरअसल, वन विभाग ने गूगल इमेजनरी का अध्ययन करने पर पाया कि वित्तीय वर्ष 2004-05 की स्थिति में आसपास के क्षेत्रों में मात्र 12 से 15 झोपडियां बनी हुई थीं।
वहां अब मौके पर बाउंड्री वाल बनी हुई है तथा उसके अंदर की भूमि पर एक आश्रम बना हुआ है, उस पर वर्ष 2015 में व्यक्ति विशेष के नाम से सामुदायिक वन अधिकार दिया गया है। बाउंड्री वाल होने के कारण जनसामान्य के लिए आवाजाही नहीं है।
चौंकाने वाली बात यह है कि दिए गए सामुदायिक वन अधिकार के पत्रक पर जिस डीएफओ शिवपुरी के हस्ताक्षर हैं, वह वर्ष 2011 से वर्ष 2013 तक ही शिवपुरी वनमंडल में कार्यरत रहे हैं। जबकि उक्त सामुदायिक वन अधिकार का आवंटन वर्ष 2015 का है, जिससे प्रतीत होता है कि यह सामुदायिक वन अधिकार त्रुटिपूर्ण एवं नियमों के विपरीत आवंटित किया गया है।
इसकी सूचना भोपाल स्थित वन मुख्यालय की भू-अभिलेख शाखा के पीसीसीएफ मनोज अग्रवाल पत्र ने दी है। सुप्रीम कोर्ट एवं केंद्र के जनजातीय कार्य विभाग के निर्देश पर उन्होंने संचालक आदिमजाति क्षेत्रीय विकास योजनाएं तथा सीसीएफ शिवपुरी वन वृत्त को पिछले माह पत्र लिखा। अब इस मामले को गंभीरता से लेते हुए वन विभाग के अपर मुख्य सचिव अशोक बर्णवाल ने शिवपुरी कलेक्टर एवं वहां के डीएफओ से संयुक्त जांच रिपोर्ट मांगी है।
पीसीसीएफ के पत्र में यह भी उल्लेख किया गया है कि वर्ष 2017 में 63 से अधिक अपात्र लोगों को वन अधिकार पत्र वितरित किए गए हैं जो कि वन अधिकार एक्ट 2006 का स्पष्ट उल्लंघन है। पत्र में जांच कर नियम विरुद्ध बांटे गए वन अधिकार पत्र निरस्त करने के निर्देश दिए गए हैं। इसके अलावा वर्ष 2017 में ही नियम विरुद्ध बिना वन अधिकार पत्र आवंटन पर 30 से अधिक लोगों को इंदिरा आवास स्वीकृत किए गए हैं, जो वन संरक्षण अधिनियम 1980 एवं वन अधिकार अधिनियम 2006 का स्पष्ट उल्लंघन है।