
भोपाल (राज्य ब्यूरो)। चंबल अभयारण्य के डिनोटिफाई क्षेत्र को लेकर स्थिति अब तक साफ नहीं हुई है। मामला केंद्र सरकार में विचाराधीन है। राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य में स्थानीय निवासियों की आवश्यकताओं के लिए 31 जनवरी, 2023 को डिनोटिफाई किए गए 207.049 हेक्टेयर क्षेत्र के मामले में केंद्र सरकार ने सवाल उठाया है कि डिनोटिफाई क्षेत्र के बदले समतुल्य भूमि क्यों नहीं उपलब्ध कराई गई। सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि वन भूमि डिनोटिफाई करने पर समतुल्य भूमि देनी होगी। इसके बाद अब मध्य प्रदेश का वन विभाग नए सिरे से इसकी कवायद में जुट गया है। इस क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में रेत का भंडार है और डिनोटिफाई होने से स्थानीय लोगों को रेत की उपलब्धता आसान होगी।
स्थानीय निवासियों को रेत आपूर्ति की व्यवस्थाओं के लिए राज्य सरकार ने सात माह पहले मुरैना वनमंडल में स्थित राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य का कुछ हिस्सा डिनोटिफाई होने के बाद मुरैना डीएफओ की आपत्ति है कि अभयारण्य की सीमा से एक किमी बाहर का क्षेत्र इको सेंसेटिव जोन है तथा इसमें रेत का खनन नहीं हो सकता है। इस पर तय हुआ कि इको सेंसेटिव जोन को खत्म किया जाए।
राज्य के पर्यावरण विभाग के माध्यम से इसका प्रस्ताव केंद्र की स्वीकृति के लिए भेजा गया, लेकिन केंद्र ने कहा है कि पहले इको सेंसेटिव जोन की सीमा तो तय करें।
अभयारण्य से रेत खनन के लिए जो तीन अलग-अलग हिस्से डिनोटिफाई किए गए हैं, वे अभयारण्य की सीमा पर न होकर अंदर स्थित हैं। वन कानूनों के अनुसार, वन क्षेत्र में मार्ग बनाकर रेत का परिवहन नहीं किया जा सकता है।