राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, भोपाल। विधानसभा में कांग्रेस विधायक प्रताप ग्रेवाल के प्रश्न के लिखित उत्तर में मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा कि शिकायत पर जांच पंजीबद्ध करने और जांच के बाद एफआइआर दर्ज करने का औसत समय बताना संभव नहीं है। हालांकि, सच्चाई यह है कि दोनों जांच एजेंसी लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू में शिकायत पर जांच पंजीबद्ध होने में डेढ़ से दो वर्ष लग रहे हैं। लगभग इतना ही समय जांच के बाद एफआईआर पंजीबद्ध करने में लग रहा है। इसकी वजह यह बताई जाती है कि जांच अधिकारियों के पास काम का बहुत दबाव है। दोनों एजेंसियों में एक-एक जांच अधिकारी के पास 23 से 25 मामले लंबित हैं।
लोकायुक्त संगठन में प्रतिवर्ष चार हजार से पांच हजार शिकायतें पहुंचती हैं। जांच के बाद लगभग 10 प्रतिशत में ही एफआइआर पंजीबद्ध की जाती है। शिकायतों के परीक्षण के लिए संगठन के मुख्यालय से लेकर सात जोनल कार्यालयों में पर्याप्त अमला ही नहीं है। ऐसे कई मामले हैं, जब शिकायत की जांच कर जांच प्रकरण पंजीबद्ध करने में ही डेढ़ से दो वर्ष लग रहे हैं। ताजा मामला पूर्व विधायक पारस सकलेचा की टेक होम राशन घोटाले से जुड़ी शिकायत का है, जिसमें लगभग दो वर्ष बाद जांच पंजीबद्ध की गई है।
इसी तरह से सेवानिवृत आईएएस अधिकारी वेद प्रकाश शर्मा के विरुद्ध शिकायतकर्ता रमाकांत कौरव ने दिसंबर 2021 में संगठन में शिकायत कर पद का दुरुपयोग कर शस्त्र लाइसेंस देने की शिकायत की थी, जिस पर अगस्त 2023 में प्रकरण कायम हुआ। नर्मदापुरम में वर्ष 2015-16 में हुए रेशम घोटाले की जांच लोकायुक्त संगठन आज तक पूरा नहीं कर पाया। ईओडब्ल्यू में भी लोकायुक्त संगठन की तरह शिकायत पंजीबद्ध करने में दो वर्ष तक लग रहे हैं।
ईओडब्ल्यू ने जिस जीएसटी घोटाले पर अब एफआइआर दर्ज की है, उसकी शिकायत 2022 में हुई थी यानी तीन साल का वक्त लग गया। कई शिकायतों में तो शिकायतकर्ता को हाईकोर्ट में याचिका लगानी पड़ी, तब जांच प्रारंभ हुई। उदाहरण के तौर पर सहारा समूह की जमीनें बेचने में हुई गड़बड़ी की शिकायत की जांच करने में ईओडब्ल्यू में देरी हुई तो शिकायतकर्ता मनु दीक्षित ने इसी वर्ष जनवरी में हाई कोर्ट में याचिका लगाई थी।