MP Crime News: सांसदों की फर्जी नोटशीट पर तबादलों की अनुशंसा करने वाले दो आरोपित गिरफ्तार
मुख्य आरोपित राजगढ़ से सांसद रोडमल नागर का प्रतिनिधि। गिरफ्तार दोनों आरोपित जिला शाजापुर के रहने वाले हैं।
By Ravindra Soni
Edited By: Ravindra Soni
Publish Date: Fri, 20 Aug 2021 01:23:45 PM (IST)
Updated Date: Fri, 20 Aug 2021 01:23:45 PM (IST)

भोपाल (नवदुनिया प्रतिनिधि)। मध्य प्रदेश के सांसदों की फर्जी नोटशीट-लैटरहेड का इस्तेमाल कर शासकीय कर्मचारियों के ट्रांसफर की अनुशंसा करने वाले दो आरोपितों को क्राइम ब्रांच ने गिरफ्तार किया है। मुख्य आरोपित राजगढ़ से सांसद रोडमल नागर का प्रतिनिधि है। उसने सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर, सांसद महेंद्र सिंह सोलंकी, सांसद रोडमल नागर, सांसद उदय प्रताप सिंह की फर्जी नोटशीट बनाकर पांच सरकारी कर्मचारियों के ट्रांसफर की सिफारिश की थी।
एएसपी क्राइम ब्रांच गोपाल धाकड़ के मुताबिक लालसिंह राजपूत निवासी वीरा गांव, शाजापुर व कमल कुमार प्रजापति निवासी कुम्हार मोहल्ला मोहन बड़ोदिया, शाजापुर को गिरफ्तार किया है। लालसिंह राजपूत सांसद रोडमल नागर का प्रतिनिधि है। उसकी पत्नी सरपंच है। जबकि दूसरा आरोपित कमल कम्प्यूटर ऑपरेटर है। आरोपितों ने प्रदेश के चार सांसदों की फर्जी नोटशीट बनाकर पांच शासकीय अधिकारी-कर्मचारियों के तबादले की अनुशंसा की थी। इनमें तीन अधिकारी शिक्षा विभाग के हैं, जबकि दो राजस्व विभाग के कर्मचारी शामिल हैं।
लालसिंह ने क्राइम ब्रांच की पूछताछ में बताया कि सांसद का प्रतिनिधि होने की वजह से वॉट्सएप में सांसदों द्वारा भेजे गए लेटरहैड, नोटशीट आते थे। कमल मूल लेटरहैड का हैडर को कॉपी कर कम्प्यूटर से उसी तरह का फर्जी लेटरहैड तैयार कर लेता था। इतना ही नहीं, सांसदों के हस्ताक्षर भी उसने कम्प्यूटर से कॉपी कर ही बनवाए हैं।
पांच आरोपित पहले हो चुके गिरफ्तार
भोपाल क्राइम ब्रांच ने पिछले दिनों विधायक की फर्जी नोटशीट भेजकर कर्मचारियों के ट्रांसफर की अनुशंसा करने के मामले में पांच आरोपितों को गिरफ्तार किया था। आरोपितों में स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी का पुराना चपरासी रामगोपाल पाराशर, विधायक रामपाल सिंह का पूर्व कुक रामप्रसाद राही भी शामिल थे। आरोपितों ने फर्जी तरीके 30 शासकीय कर्मचारियों की तबादला सिफारिश भेजी थी।
दस-बीस हजार में बुकिंग, काम होने पर डेढ़ लाख
आरोपितों ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि सांसद के नाम पर फर्जी अनुशंसा पत्र बनाने के लिए दस से बीस हजार रुपये लेते थे। ट्रांसफर हो जाने के बाद एक से डेढ़ लाख रुपये में सौदा तय किया गया था।