
राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, भोपाल। मध्य प्रदेश की बिजली कंपनियों ने एक बार फिर आम उपभोक्ता की जेब पर बोझ डालने की तैयारी कर ली है। राज्य विद्युत नियामक आयोग को वर्ष 2026-27 में बिजली की दर में 10.19 प्रतिशत वृद्धि का प्रस्ताव घाटे 6,044 करोड़ रुपये के आधार पर दिया है। यह घाटा भी कोई आज का नहीं बल्कि वर्षों पुराना है, जिसे आयोग अस्वीकार कर चुका है। जबकि, होना यह चाहिए कि भारत सरकार ने आमजन को राहत देने के लिए जीएसटी में जो छूट दी, उसका लाभ बिजली की दर में कमी करके दिया जाता।
दरअसल, कोयले पर जो जीएसटी सरचार्ज लगता था, वह समाप्त कर दिया गया है। बिजली क्षेत्र के जानकारों का मानना है कि बिजली कंपनियां अपनी असफलताओं को छुपाने के लिए बिजली दर बढ़ाना चाहती हैं। आयोग ने बिजली कंपनियों की याचिका पर 24 फरवरी से जनसुनवाई करने का निर्णय लिया है। इसके लिए आपत्तियां 25 जनवरी तक ली जाएंगी। प्रदेश में एक करोड़ 29 लाख घरेलू उपभोक्ता हैं।
मध्य प्रदेश में बिजली की व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए अलग-अलग कंपनियां बनाई गई थीं लेकिन इसका कोई लाभ आम उपभोक्ता को नहीं मिला। प्रतिवर्ष कंपनियां घाटे का रोना रोकर नियामक आयोग में बिजली की दर बढ़ाने की याचिका लगाती हैं और कुछ न कुछ वृद्धि हो भी जाती है। इस बार पावर मैनेजमेंट कंपनी ने बिजली कंपनियों को हो रहे घाटे की भरपाई के लिए 10.19 प्रतिशत से वृद्धि की मांग की है। इसके पीछे जो आधार दिया है वह गले के नीचे नहीं उतरता है। कंपनियों ने बताया कि 2014-15 से 2022-23 की अवधि में 3,451 करोड़ रुपये की वृद्धि का प्रस्ताव अस्वीकार किया गया था, उसके कारण प्रबंधन में समस्या आ रही है।
इसी तरह स्मार्ट मीटर लगाने में होने वाले 820 करोड और लगभग 300 करोड़ रुपये बिजली खरीदी का व्यय बताया गया है। जबकि, स्मार्ट मीटर लगाते समय यह दावा किया गया था कि इसका भार उपभोक्ता पर नहीं पड़ेगा। बिजली चोरी रुकेगी और जो लागत है उसकी भरपाई हो जाएगी। इसी तरह बिजली खरीदी का भार भी उपभोक्ताओं पर डालने की तैयारी है। जबकि, प्रदेश में सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता 5,781 मेगावाट हो गई है।
यह बिजली तीन रुपये प्रति यूनिट से कम दर पर मिल रही है। ऐसे में निश्चित तौर पर लागत घटनी चाहिए पर यह बढ़ रही है। बिजली क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि बिजली कंपनियों का प्रबंधन फेल है। भ्रष्टाचार के कारण समस्या बढ़ रही है। उधर, ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर कह रहे हैं कि हमारा प्रयास है कि वर्ष 2028 तक मध्य प्रदेश में बिजली की कीमत न बढ़े पर कंपनियों द्वारा आयोग में लगाई याचिका से ऐसा प्रतीत नहीं होता है।

बिजली से जुड़े मामलों के जानकार राजेंद्र अग्रवाल का कहना है कि ऊर्जा प्रभार औसत 51 पैसे प्रति यूनिट और नियत प्रभार प्रति 15 यूनिट 28 से बढ़ाकर 31 रुपये करने का प्रस्ताव दिया गया है। कंपनियों द्वारा प्रस्तुत दर वृद्धि का प्रस्ताव आधारहीन है और उपभोक्ता पर बोझ बढ़ाने वाला है। जब 20 लाख के आसपास स्मार्ट मीटर लग गए तो खपत नियंत्रित हुई होगी, जिससे लागत घटी होगी।
प्रति एक हजार किलोग्राम कोयला पर लगभग 400 रुपये जीएसटी सरचार्ज लग रहा था, जो समाप्त हो गया है पर याचिका में इसका प्रभाव नजर नहीं आया। जिस बकाया राशि को आधार बनाकर 10.19 प्रतिशत की वृद्धि मांगी गई है, वह पूरी तरह अव्यवहारिक है, क्योंकि आयोग इसे अस्वीकार कर चुका है। कंपनियां इस पर न तो पुनर्विचार याचिका दायर कीं और न ही अपीली न्यायाधिकरण गईं। आयोग ने 24 फरवरी को जबलपुर, 25 को इंदौर और 26 फरवरी 2026 भोपाल क्षेत्र की सुनवाई करेगा। इसके बाद ही निर्णय होगा।
राजनीति भी बिजली व्यवस्था को बिगाड़ने में कम दोषी नहीं है। विधानसभा चुनाव के समय मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए 31 अगस्त 2023 तक के घरेलू उपभोक्ताओं के लगभग बकाया राशि 4,800 करोड़ रुपये की वसूली स्थगित करा दी। इसकी भरपाई विद्युत वितरण कंपनियों से होनी थी, जो नहीं की गई। अब इस राशि की वसूली उपभोक्ताओं से की जानी है या फिर कोई और रास्ता निकालना है, इसके लिए उप मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा की अध्यक्षता में समिति बनाई गई है। यानी उपभोक्ताओं के ऊपर वसूली की तलवार अभी भी लटक रही है।