वैभव श्रीधर, नईदुनिया, भोपाल। मध्य प्रदेश में हर तरफ से खाद की कमी की शिकायत सामने आ रही है। सरकार दावा करती है कि खाद पर्याप्त है। कुछ जगह आने में विलंब हो सकता है पर कमी नहीं है। पिछले खरीफ सीजन में 33 लाख टन खाद की खपत हुई थी और इस बार सितंबर 2025 के पहले सप्ताह तक 30 लाख टन खाद किसानों को बांटी जा चुकी है।
खाद आने का क्रम जारी है इसलिए संकट नहीं है लेकिन वास्तविकता इससे इतर है। खाद की कमी है, तभी तो दुकानों के बाहर लाइन लग रही है।कानून व्यवस्था की स्थिति संभालने के लिए कहीं दुकान बंद करनी पड़ी रही तो कहीं पुलिस को लाठी भांजनी पड़ रही है। कृषि और सहकारिता जैसे बड़े विभाग भी खाद प्रबंधन को ठीक से संभाल नहीं पा रहे हैं।
मध्य प्रदेश में इस बार मक्का का क्षेत्र सवा पांच लाख हेक्टेयर बढ़ गया,यह बात सही है इसलिए खपत भी बढ़ गई। भारत सरकार ने खरीफ 2025 के लिए 41.38 लाख टन का आवंटन स्वीकृत किया यानी पिछले साल से 7.56 लाख टन अधिक। इसके बाद भी ऐसा कोई जिला नहीं है जहां से खाद की कमी की सूचना सामने ना आई हो।
केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान का घेराव भी सतना में हो गया लेकिन अधिकारी यह मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि खाद की कमी है। यही कारण है कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के खाद संकट को लेकर बार-बार बैठक करने के बाद भी स्थिति में कोई खास सुधार होता नजर नहीं आता है।
दरअसल, खाद संकट का पहला बड़ा कारण मांग का अनुमान लगाने में असफल रहना है। अधिकारी पिछले साल के आधार पर आठ-दस प्रतिशत अधिक खाद का प्रस्ताव भारत सरकार को भेज देते हैं। दूसरा कारण वितरण व्यवस्था का ठीक ना होना है। पहले खाद राज्य सहकारी विपणन संघ (मार्कफेड) के गोदाम यानी डबल लाक में रहती थी।
यहां से प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति को सिंगल लाक में दी जाती थी। अग्रिम भंडारण के नाम पर खाद सीधे समितियों को देना प्रारंभ हुआ, तभी से व्यवस्था बिगड़ी। इसमें बड़े किसान तो पहले ही खाद ले जाते हैं लेकिन कम जोत वाले भंडारण व्यवस्था के अभाव में रह जाते हैं। ऊपर से मंत्री हो या फिर रसूखदार व्यक्ति के क्षेत्र में दबाव के कारण अधिकारी खाद पहले पहुंचा देते हैं।
भोपाल जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के पूर्व अध्यक्ष विजय तिवारी का कहना है कि खाद संकट का बड़ा कारण व्यवस्था की खामी है। जब आफ सीजन रहता है तब भंडारण किया जाना चाहिए। खाद के लिए समितियों को नकद राशि जमा करनी पड़ती है लेकिन कई समितियां आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण राशि नहीं दे पाती हैं। अधिकारियों को प्रशासक बना दिया है, जिनकी समिति को चलाने में कोई रुचि नहीं रहती है।
सहकारी समितियों की माली स्थिति किसी से छुपी नहीं है। अधिकतर समितियां घाटे में हैं। मार्कफेड को जिला बैंकों से करीब सात सौ करोड़ रुपये खाद के लेने हैं, जो समितियां दे नहीं पा रही हैं। कई डिफाल्टर हो चुकी हैं और उन्हें खाद नहीं मिल रहा है। इसका परिणाम यह हुआ कि समिति के सदस्यों को खाद नहीं मिला।
किसानों ने हल्ला मचाया तो सरकार ने नकद में खाद देने की व्यवस्था बनाई लेकिन छोटे किसानों की मुसीबत हो गई क्योंकि वे उधारी पर ही खाद-बीज ले जाते हैं। एक और बड़ा कारण निर्वाचित संचालक मंडल का ना होना है। चुने हुए जनप्रतिनिधि रहते हैं तो वे किसानों को समझा-बुझाकर कुछ राशि जमा करवा लेते हैं लेकिन यहां 12-13 साल से चुनाव ही नहीं हुए हैं। सभी समितियों में अधिकारी प्रशासक हैं, जिनका किसानों से सीधा कोई जुड़ाव नहीं है।
मार्कफेड ने दावा किया था कि सीजन पर किसानों को खाद की कमी का सामना ना करने पड़े, इसके लिए ऑनलाइन एडवांस बुकिंग सिस्टम बनाया जाएगा। इसका पहला लाभ तो यह होगा कि खाद की खपत का अनुमान लग जाएगा और दूसरा यह कि किसान को परेशान नहीं होना पड़ेगा लेकिन यह धरातल पर उतर ही नहीं पाया।
पूर्व कृषि संचालक डॉ.जीएस कौशल का कहना है कि खाद की आवश्यकता का भी आकलन होना चाहिए। भूमि में किस तत्व की कमी है, यह जाने बिना खाद का उपयोग हो रहा है, जो भूमि की उर्वरा शक्ति के लिए तो नुकसानदेह है ही उपज की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है।