नईदुनिया प्रतिनिधि, भोपाल। स्कूल शिक्षा विभाग ने सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के लिए एक जुलाई से ऑनलाइन ई-अटेंडेंस अनिवार्य कर दिया है। शिक्षक पहले दिन से ही इसके विरोध में हैं। अब कुछ शिक्षक इस प्रक्रिया से बचने के लिए पाकिस्तानी कनेक्शन लेकर आए हैं। शिक्षकों ने बाकायदा आवेदन देकर शिक्षा विभाग को बताया है कि "हमारे शिक्षक" ऐप से ऑनलाइन उपस्थिति लगाने के बाद से उनके पास किसी पाकिस्तानी नंबर से फोन और मैसेज आ रहे हैं।
कटनी के शासकीय उमावि गुरजी कला रीठी के अतिथि शिक्षकों यशवंत कुशवाहा, अभिलाष द्विवेदी, रूपसिंह लोधी और सीमा सिंह ठाकुर आदि ने अपने प्राचार्य को आवेदन दिया। इसमें उन्होंने लिखा है कि उनके मोबाइल नंबर पर वाट्सएप पर पाकिस्तानी नंबरों से आडियो व वीडियो कॉल आ रहे हैं। अतिथि शिक्षकों ने शिकायत की है कि "हमारे शिक्षक ऐप" से हमलोगों की निजी जानकारी किसी गलत हाथों में जाने का अंदेशा है।
इस कारण ऑनलाइन उपस्थिति को बंद करना चाहिए। इसके अलावा नीमच के शिक्षकों ज्योति खरे, राजकुमारी लोधी और आदित्य तिवारी ने भी डाटा लीक होने की शिकायत की है। उनका कहना है कि ऐप पर हाजिरी लगाने के बाद से उनके पास कई अनजान नंबरों से वीडियो व आडियो कॉल आ रहे हैं।
मध्य प्रदेश शिक्षक संघ ने भी लोक शिक्षण संचालनालय की आयुक्त को ज्ञापन सौंपा है। उनका कहना है कि ऐप का यह डाटा न्यूयार्क स्थित मेडियन डाट काम में संग्रहित हो रहा है। जिसके निदेशक हुनैद हसन पाकिस्तानी मूल के हैं। वहीं सॉफ्टवेयर इंजीनियर अब्दुल्ला अब्दुल हुसैन बांग्लादेश का है और चिप टेक्नोलॉजी का प्रमुख वायन ही चीन का नागरिक है। इनकी वजह से उनका डाटा चोरी होकर विदेशी हाथों में जाने की पूरी आशंका है।
शिक्षक संघ ने डाटा की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किसी साइबर सुरक्षा एजेंसी से जांच कराने की मांग की है। संघ के प्रदेश अध्यक्ष क्षत्रवीर सिंह राठौर ने बताया कि हमारे शिक्षक ऐप के स्वामी होने के नाते, डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित करना स्कूल शिक्षा विभाग की ज़िम्मेदारी है। विभाग ने उनकी शिकायतों पर जांच तो नहीं की है, लेकिन इसे बहाना बताया है। विभाग का कहना है कि ई-अटेंडेंस को अनिवार्य रूप से लागू कराया जाएगा।
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शिक्षकों का नियमित स्कूल नहीं आना मध्य प्रदेश में एक बड़ी समस्या है। स्कूल शिक्षा विभाग पिछले 10 वर्षों में छह बार बायोमेट्रिक और ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज कराने की व्यवस्था बना चुकी है, लेकिन हर बार इसे असफल कर दिया गया। शिक्षा विभाग ने एक जुलाई से इसे फिर अनिवार्य किया है, लेकिन अभी तक केवल आठ प्रतिशत शिक्षक ही उपस्थिति लगा रहे हैं।
डीपीआइ संचालक केके द्विवेदी ने कहा कि यह ऐप पूरी तरह से सुरक्षित है। इससे डाटा लीक होने की संभावना नहीं है। ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज कराने के जो आदेश हैं उन्हें लागू कराया जाएगा। यह आदेश प्राचार्य पर भी लागू है।