राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, भोपाल। मध्य प्रदेश में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण मामले में राज्य सरकार की ओर से इसी माह सुप्रीम कोर्ट में हलफनामे के साथ प्रस्तुत दस्तावेजों के कुछ अंशों से बवाल मच गया है। सोशल मीडिया में वायरल अंशों के आधार पर प्रदेश की भाजपा सरकार पर भगवान राम और आचार्य द्रोणाचार्य का अपमान करने के आरोप लगाए जा रहे हैं। प्रसारित सामग्री में देश में पुरानी वर्ण और जातिगत व्यवस्था पर की गई टिप्पणियां भी दिखाई गई हैं।
सोशल मीडिया में वायरल अंशों में उल्लेख है,
‘धार्मिक व्यवस्था इतनी कठोर थी कि इसके उल्लंघन के परिणामस्वरूप ऋषि शम्बूक का वध कराया जाता है, जबकि शम्बूक तपस्या करते थे। इस काम से किसी को क्या परेशानी हो सकती थी, लेकिन छोटी जाति का व्यक्ति श्रेष्ठ काम करे, सम्मान पाए, जप-तप करे, यह नियम-व्यवस्थाओं के विपरीत माना गया। राजा राम द्वारा शम्बूक का वध करवाकर सामाजिक व्यवस्था भंग करने का दंड दिया गया।'
प्रसारित अंशों में यह भी लिखा है कि भील पुत्र होने के कारण द्रोणाचार्य ने एकलव्य को शिक्षा देने से मना कर दिया था। ऐसे कई उदाहरण हैं जब छोटी जाति के चलते योग्य व्यक्तियों को भी विद्या पढ़ने की मनाही की गई थी।
मामले ने तूल पकड़ा तो प्रदेश सरकार ने साफ किया है कि सोशल मीडिया में वायरल अंश हलफनामे में उल्लेखित नहीं हैं एवं न ही राज्य की किसी घोषित या स्वीकृत नीति या निर्णय का भाग है। वहीं, भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल ने कहा कि सोशल मीडिया पर कुछ शरारती तत्व दुष्प्रचार कर रहे हैं। सच यह है कि प्रसारित अंश मध्य प्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (महाजन आयोग) 1983 की रिपोर्ट का है, न कि वर्तमान शासन का।