नवदुनिया प्रतिनिधि, भोपाल। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भोपाल के ब्लड बैंक से रक्त और प्लाज्मा की कालाबाजारी हो रही थी। ब्लडबैंक के ही कर्मचारी संरक्षित प्लाज्मा चुराकर बाहर के व्यक्ति को बेच रहे थे। सीसीटीवी फुटेज की पड़ताल के बाद एम्स प्रबंधन ने ब्लडबैंक के एक आउटसोर्स कर्मचारी को पकड़ा है। उसके खिलाफ बागसेवनिया थाने में मामला दर्ज कराया गया है।
एम्स के ब्लडबैंक से कितना खून और प्लाज्मा चोरी हुआ है उसका ब्यौरा सामने नहीं आया है। बताया जा रहा है कि एम्स प्रबंधन दस्तावेजों से मिलान कर इसका पूरा ब्यौरा जल्दी ही पुलिस को उपलब्ध कराएगा। पुलिस फिलहाल आरोपितों की तलाश में जुट गई है। आउटसोर्स कंपनी से भी कर्मचारी का ब्यौरा मांगा गया है।
एम्स भोपाल का परिसर अत्यधिक सुरक्षित माना जाता है। यहां की ओपीडी, आंतरिक रोग विभाग और डायग्नोस्टिक प्रयोगशालाओं में दो स्तरीय सुरक्षा है। सीसीटीवी कैमरों की लगातार निगरानी का दावा है। ब्लड बैंक जैसे अत्यधिक संवेदनशील संस्थापना में वहीं का कर्मचारी कई दिनों से खून और प्लाज्मा चुराकर बेचता रहा और किसी को खबर तक नहीं लगी। जहां एक यूनिट खून की कमी किसी मरीज की जान ले सकता हो, वहां इस तरह की चोरी केवल लापरवाही का नतीजा नहीं हो सकती। बड़ा सवाल यह भी है कि इस अति सुरक्षित व्यवस्था में भी खून के कारोबारियों ने सेंध कैसे लगाई?
चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार प्लाज्मा रक्त का अहम हिस्सा है, जिसमें प्रोटीन, एंटीबाडी और क्लाटिंग फैक्टर पाए जाते हैं। इसका इस्तेमाल गंभीर बीमारियों जैसे हीमोफीलिया, इम्यून डिसआर्डर, लीवर की बीमारियों और बड़े आपरेशनों में मरीजों को जीवनरक्षक उपचार देने के लिए किया जाता है। कोरोना महामारी के दौरान भी प्लाज्मा थेरेपी की काफी चर्चा रही थी। कीमत की बात करें तो सरकारी अस्पतालों और ब्लड बैंकों में इसे मरीजों को नाम मात्र शुल्क पर उपलब्ध कराया जाता है, लेकिन निजी स्तर पर इसकी कीमत 1,500 से 5,000 रुपये प्रति यूनिट तक हो सकती है। ब्लैक मार्केट में यह दरें कई गुना बढ़ जाती हैं।