MP Government Employee Promotion: पदोन्नति के लिए यदि पुराने नियम को हरी झंडी मिली तो भी नए नियम ही लागू करेगी सरकार
MP News: एक से जो पदोन्नत हो गए, उनकी बल्ले-बल्ले रहेगी क्योंकि पदावनत नहीं करना होगा और नए नियम में भी उन्हें संरक्षण मिलेगा पर सामान्य वर्ग जो अपने अधिकार के लिए लड़ रहा था, उसके हाथ खाली के खाली रहेंगे क्योंकि ये वर्ग आरक्षण के कारण पिछड़ चुका है और नए नियम में बराबर आने का कोई अवसर भी नहीं दिया है।
Publish Date: Wed, 17 Sep 2025 07:57:39 PM (IST)
Updated Date: Wed, 17 Sep 2025 08:03:59 PM (IST)
मध्य प्रदेश के सरकारी कर्मचारी।HighLights
- हाई कोर्ट ने 2016 में निरस्त किए थे पदोन्नति नियम-2002।
- अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के लोगों को पदावनत होने से।
- बचाने के लिए सरकार लड़ रही है पुराने नियम की लड़ाई।
राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, भोपाल। प्रदेश में नौ वर्ष से बंद पदोन्नति को फिर प्रारंभ करने के लिए हाई कोर्ट जबलपुर में सुनवाई हुई तो 2002 के नियम की बात उठी। पूछा गया कि यदि सुप्रीम कोर्ट से 2002 के नियम को हरी झंडी मिल गई तो क्या उसे ही मानेंगे या फिर नए नियम से पदोन्नति की जाएगी।
सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि अब पदोन्नति नए नियम से ही होगी। इन्हें सुप्रीम कोर्ट के पदोन्नति में आरक्षण संबंधी विभिन्न दिशा-निर्देशों की रोशनी में सभी पक्षों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है।
दरअसल, सरकार 2002 के पदोन्नति नियम से पदोन्नत हुए अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के अधिकारियों-कर्मचारियों को पदावनत नहीं करना चाहती है इसलिए सुप्रीम कोर्ट में पुराने नियम की लड़ाई लड़ रही है।
वहीं, सामान्य पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी-कर्मचारी संस्था (सपाक्स) का मानना है कि सरकार असमंजस में है इसलिए न्यायालय के समक्ष पुराने और नए नियम की बात कर रही है।
असमंजस में है सरकार
- सरकार का तर्क है कि 2002 के नियम स्थगित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दिए हैं। जबकि, हाई कोर्ट जबलपुर में 2016 में नियम निरस्त कर चुका है। इसी निर्णय को तो सुप्रीम कोर्ट में सरकार द्वारा चुनौती दी गई है।
सपाक्स के संस्थापक अध्यक्ष केपीएस तोमर का कहना है कि सरकार के स्तर पर असमंजस की स्थिति है। एक ओर पुराने नियम को लेकर हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई तो दूसरी ओर नए नियम बना दिए। अब कहा जा रहा है कि पदोन्नति नए नियम से देंगे तो फिर पुराने को लेकर लड़ाई क्यों लड़ी जा रही है।
यही स्थिति यथास्थिति पदावनति को लेकर भी है। दरअसल, सरकार को यह डर था कि यदि पुराने नियम से पदोन्नत हुए अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के अधिकारियों-कर्मचारियों को पदावनत किया जाता तो इसका सियासी नुकसान हो सकता है।
यही कारण है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका लगाई। अब जो स्थिति बन रही है, उसमें यदि पुराने नियम को हरी झंडी मिल जाती है तो दो नियम रहेंगे। मुख्यमंत्री ने पहल की पर अधिकारी रास्ता निकालने में रहे विफल
- मंत्रालयीन अधिकारी-कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सुधीर नायक का कहना है कि जिस विवादित विषय को कोई हाथ नहीं लगा रहा था, मुख्यमंत्री मोहन यादव ने उस पर सकारात्मक रुख अपनाते हुए पहल की। उनकी मंशा भी यही थी कि रास्ता निकलना चाहिए पर अधिकारी इसमें विफल रहे।
सुनवाई में जो तर्क सामने आ रहे हैं, उससे साफ है कि सरकार तय नहीं कर पा रही है कि आखिर करना क्या है। जब नए नियम बना लिए तो पुराने को लेकर दायर याचिका वापस ली जानी चाहिए थी।
यथास्थिति की भी नई परिभाषा निकाली गई है कि हाई कोर्ट द्वारा निरस्त नियम स्थगित हैं। जब नए नियम लाए ही हैं तो फिर याचिका वापस लेकर उस पर अडिग रहना चाहिए।
लेकिन ऐसा न करके असमंजस की स्थिति बनाई जा रही है। इससे तो ऐसा लगता है कि अधिकारी मामले को लंबा खींचना चाहते हैं ताकि न पदोन्नति देनी पड़े और न किसी को पदावनत करना पड़े।