राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, भोपाल। किसानों को उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए शिवराज सरकार में लागू की गई भावांतर भुगतान योजना मध्य प्रदेश में एक बार फिर लागू होने जा रही है। कांग्रेस की कमल नाथ सरकार ने इसे वर्ष 2018 में बंद कर दिया था। मोहन सरकार ने इस योजना के अंतर्गत किसानों को मंडियों में सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य न मिलने पर औसत भाव निकालकर अंतर की राशि बोनस के रूप में देने का निर्णय किया है। प्रदेश में इस सीजन में 56 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में 25 लाख से अधिक किसानों ने सोयाबीन की खेती की है। अति वर्षा और पीला मोजेक रोग का प्रकोप होने से फसल खराब भी हुई है और गुणवत्ता भी कमजोर है।
पिछले कुछ सालों से प्रदेश में किसानों को सोयाबीन का अच्छा भाव नहीं मिल रहा है। पिछले साल 4,892 रुपये प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य था लेकिन 3,800 रुपये के आसपास यह मंडियों में बिक रहा था। किसानों संघों ने छह हजार रुपये प्रति क्विंटल दिलाने की मांग की थी।
इस बीच कृषि मंत्रालय ने महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर प्राइस सपोर्ट स्कीम में सोयाबीन खरीदने की अनुमति दी तो मध्य प्रदेश में भी दबाव बना। सरकार ने 10 सितंबर, 2024 को कृषि मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 24 घंटे के भीतर 13. 68 लाख टन सोयाबीन समर्थन मूल्य पर लेने के आदेश जारी कर दिए।
यही स्थिति इस बार भी बनती नजर आई। चूंकि, उपार्जन करने में कई व्यवस्थाएं करनी होती हैं। नुकसान अलग होता है। इसे देखते हुए मुख्यमंत्री मोहन यादव ने शिवराज की राह पर चलते हुए उपार्जन करने के स्थान पर वर्ष 2017 के भावांतर देने के माडल को अपनाने का निर्णय लिया। इसका लाभ यह होगा कि सरकार को न तो उपार्जन केंद्र बनाने पड़ेंगे और न ही परिवहन और भंडारण की चिंता करनी होगी। गोदामों में उपज को होने वाले नुकसान की प्रतिपूर्ति के झंझट से भी मुक्ति रहेगी।
कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि दो-तीन राज्यों की मंडियों में सोयाबीन के विक्रय मूल्य के आधार पर माडल दर निर्धारित होगी। यदि किसान की उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर बिकती है तो उसे माडल दर के अंतर की राशि निकालकर दे दी जाएगी। इस तरह उपज माडल दर से अधिक और समर्थन मूल्य से कम पर बिकती है तो उस स्थिति में दोनों के अंतर की राशि का भुगतान किया जाएगा।
माडल दर प्रति सप्ताह या 15 दिन के अंतराल पर निर्धारित की जा सकती है। शिवराज सरकार में यह प्रति सप्ताह के आधार पर निर्धारित होती थी और उस अवधि में जो उपज बेची जाती थी, उसके हिसाब से भावांतर दिया जाता था। हालांकि, योजना का आर्थिक पक्ष उस स्थिति में नुकसानदायक हो जाता है जब व्यापारी जानबूझकर उपज का मूल्य समर्थन मूल्य से कम रखते हैं। इससे सरकार पर आर्थिक भार पड़ता है।
कमल नाथ सरकार ने इसी आधार पर योजना को बंद कर दिया था। किसान आंदोलन से जुड़े कांग्रेस नेता डीपी धाकड़ का कहना है कि पीला मोजेक रोग और अति वर्षा ने सोयाबीन की फसल बर्बाद कर दी है। मंडियों में चार हजार से अधिक का भाव ही नहीं है।
विभागीय अधिकारियों का कहना है कि योजना का खाका खींचा जा रहा है। केवल पंजीकृत किसानों को ही योजना का लाभ मिलेगा। इसके लिए उन्हें मंडियों में उपज बेचनी होगी। इसका पूरा हिसाब मंडियों में रखा जाएगा।