
राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, भोपाल। मध्य प्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण पर रोक और कोर्ट में लंबे समय से चल रही सुनवाई के बीच प्रशासनिक ढांचा गड़बड़ा गया है। स्थिति यह है कि मंत्रालय में अवर सचिव के 80 प्रतिशत पद पर आरक्षित वर्ग के अधिकारी पदस्थ हैं। कई विभागों में स्थिति ठीक नहीं है। पीडब्ल्यूडी में वर्ष 2035 तक मुखिया एसटी-एसटी वर्ग के ही होंगे। जल संसाधन विभाग में भी यही स्थिति है। ऐसे कई विभाग हैं जहां पदोन्नति का इंतजार करते हुए अधिकारी सेवानिवृत्त हो गए और कई वरिष्ठ अधिकारी कनिष्ठ के नीचे काम कर रहे हैं।
दरअसल, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने अप्रैल 2016 में मध्य प्रदेश लोक सेवा पदोन्नति नियम-2002 निरस्त कर दिया था, इस नियम के अनुसार एसटी वर्ग के कर्मचारियों को पदोन्नति में 20 प्रतिशत और एससी वर्ग के कर्मचारी को 16 प्रतिशत पदों पर आरक्षण उपलब्ध कराया गया था। हाई कोर्ट ने इसे समानता के अधिकार के विपरीत बताते हुए खारिज कर दिया था। तभी से आरक्षित और अनारक्षित वर्ग के बीच संघर्ष की स्थिति बनी हुई है।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव सरकार ने पदोन्नति के नए नियम बनाए लेकिन वह भी हाई कोर्ट ने स्थगित कर दिए हैं। इस कानूनी दांवपेच के कारण अब तक लगभग एक लाख कर्मचारी बिना पदोन्नति के सेवानिवृत्त हो चुके हैं। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सरकार से क्वांटिफायबल डेटा सीलबंद लिफाफे में मांगा था। हाई कोर्ट ने सरकार द्वारा प्रस्तुत क्वांटिफायबल डेटा पर भी असहमति जताई है। अनारक्षित वर्ग को 36 प्रतिशत पद पर आरक्षण पर सहमत मंत्रालय सेवा अधिकारी/कर्मचारी संघ के अध्यक्ष इंजीनियर सुधीर नायक ने कहा कि अनारक्षित वर्ग के लिए पदोन्नति में 36 प्रतिशत पद सुरक्षित किए जाने पर कोई आपत्ति नहीं है।
बस, नियम ऐसे बनाए जाएं कि सभी वर्ग अपनी-अपनी श्रेणी में ही आगे बढ़े। नायक ने कहा कि उच्च पदों पर आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों का प्रतिशत लगभग शत प्रतिशत हो जाने से प्रशासनिक ढांचा चरमरा गया है। मंत्रालय में अवर सचिव के 65 पदों में से 58 पदों पर आरक्षित वर्ग के अधिकारी थे। पीडब्ल्यूडी और पीएचई में ईएनसी के सारे पदों पर आरक्षित वर्ग के अधिकारी हैं। ऐसे न जाने कितने प्रसंग हैं जब किसी अधिकारी का पीए बाद में उसी अधिकारी से वरिष्ठ हो गया।
नागराज प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले के बाद 'पदोन्नति में आरक्षण' स्थिर नहीं है। कई शर्तें नियुक्ति में आरक्षण के लिए नहीं हैं परंतु पदोन्नति में आरक्षण के लिए हैं। पर्याप्त प्रतिनिधित्व की तो बात ही नहीं है यहां तो पर्याप्त से बहुत अधिक प्रतिनिधित्व हो चुका है। उधर, हाई कोर्ट में प्रस्तुत क्वांटिफायबल डेटा में रिपोर्ट को तीन प्रकार से बनाया गया है। पदों की गणना वर्ष 2016 की स्थिति में की गई और वर्ष 2025 की स्थिति में बताई गई है। यदि नए नियमों के तहत पदोन्नति होती है तो यह स्थिति बनेगी।
संचालनालय पशु चिकित्सा : संचालक का एक पद स्वीकृत है 2017 में उक्त पद पर एससी वर्ग के संचालक थे और वर्ष 2025 में उक्त पद पर एसटी वर्ग के संचालक हैं। संयुक्त संचालक के कुल 21 पद हैं वर्ष 2017 में आरक्षित वर्ग के 10 संयुक्त संचालक थे। सामान्य वर्ग के 0 थे। शेष पद रिक्त थे। वर्ष 2025 में संयुक्त संचालक में आरक्षित वर्ग के दो संयुक्त संचालक हैं। सामान्य वर्ग 0 है। शेष पद रिक्त हैं। उप संचालक के कुल 204 पद हैं। वर्ष 2017 में आरक्षित वर्ग के 28 उपसंचालक थे। सामान्य वर्ग के 81 थे। शेष पद रिक्त थे। वर्ष 2025 में आरक्षित वर्ग के 17 उपसंचालक हैं। सामान्य वर्ग के 04 हैं। शेष पद रिक्त हैं।
वर्ष 2017 में एससी वर्ग का एक एडीशनल सेक्रेटरी था। सामान्य वर्ग व एसटी वर्ग से कोई नहीं। वर्ष 2025 में सामान्य/एससी/एसटी तीनों से कोई नहीं हैं। उपसचिव के कुल 13 पद स्वीकृत हैं। वर्ष 2017 में आरक्षित वर्ग के सात उपसचिव थे। सामान्य वर्ग 0 था। शेष रिक्त थे। वर्ष 2025 में सभी पद रिक्त हैं। अवर सचिव के कुल स्वीकृत पद 57 हैं वर्ष 2017 में आरक्षित वर्ग के 38 अवर सचिव थे। सामान्य वर्ग के 02 अवर सचिव थे। शेष पद रिक्त थे। वर्ष 2025 में आरक्षित वर्ग के 18 अवर सचिव हैं और सामान्य वर्ग का केवल 01 है।
- सामान्य वर्ग से कोई उच्च पद पर नहीं
- ईएनसी के कुल पद 06 हैं, सभी रिक्त हैं।
- इंजीनियर के कुल 15 पदों में सभी रिक्त हैं
- अधीक्षण यंत्री के कुल पद 37 है। इसमें आरक्षित वर्ग के 23 तो सामान्य वर्ग से केवल एक है। शेष रिक्त हैं।
- कार्यपालन यंत्री के कुल 128 पद हैं। इसमें आरक्षित वर्ग के आठ तो सामान्य वर्ग के तीन हैं। शेष पद रिक्त हैं।
आरक्षण देने से पहले ही राज्य सरकार को डाटा देखना चाहिए था। सर्वोच्च न्यायालय ने जो गाइडलाइन दी है, उसका भी पालन नहीं किया गया। प्रतिनिधित्व से लेकर क्रीमिलेयर जैसे किसी तथ्य को नहीं देखा गया। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड जैसे राज्य में तो पदोन्नति में आरक्षण को पूरी तरह समाप्त कर दिया है लेकिन यहां वोटों के लालच में नियम विपरीत आरक्षण दिया गया है। हाई कोर्ट ने भी सरकार के डाटा को समानता के अधिकार के अनुकूल नहीं पाया है। - केएस तोमर, अध्यक्ष सपाक्स (सामान्य पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी- कर्मचारी संघ )