राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, भोपाल। मध्य प्रदेश के कर्मचारियों को पदोन्नति देने के नियम बनाकर लागू करने के साथ ही राज्य सरकार ने हाई कोर्ट में कैविएट दायर की थी ताकि कोर्ट में किसी भी तरह का मामला आने पर सरकार का पक्ष अवश्य सुना जाए।
बावजूद इसके सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से मजबूत जवाब नहीं आया। यही वजह है कि अब पदोन्नति का मामला एकबार फिर उलझता नजर आ रहा है। मंगलवार को सामान्य प्रशासन विभाग में दिनभर अधिकारी बैठकें करते रहे, लेकिन किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पाए।
उल्लेखनीय है कि सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा मध्य प्रदेश लोक सेवा पदोन्नति नियम- 2025 मप्र राजपत्र में 19 जून 2025 को अधिसूचित किया था। नए नियम से लगभग चार लाख कर्मचारियों की पदोन्नति का रास्ता साफ हुआ था, लेकिन सामान्य, ओबीसी और अल्पसंख्यक वर्ग एवं आरक्षित वर्ग को पदोन्नति देने का फार्मूला ठीक न होने से मामला कानूनी दांवपेच में उलझ गया।
नियम से पहले तुलनात्मक चार्ट भी नहीं बनाया जा सका, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि किस वर्ग का कितना प्रतिनिधित्व है। नियमों में इतनी विसंगतियां की गईं कि सरकार कोर्ट में यह भी स्पष्ट नहीं बता पा रही है कि वर्ष 2002 के पुराने नियम और 2025 में बने नए नियम में क्या फर्क है।
अब 15 जुलाई को हाई कोर्ट में अगली सुनवाई है, तब तक सरकार को अपना पक्ष रखने का समय दिया गया है, लेकिन इस पूरे मामले को लेकर कर्मचारी फिर दो धड़े में बट गए हैं और सरकार को लेकर मुखर हो गए हैं।
कर्मचारी संगठनों का कहना है कि नए नियम में अनुसूचित जनजाति वर्ग को 20 प्रतिशत, अनुसूचित जाति वर्ग को 16 प्रतिशत आरक्षण दिया है। इसे लेकर किसी का कोई विरोध नहीं है लेकिन शेष 64 प्रतिशत जो पद अनारक्षित यानी सामान्य श्रेणी के हैं उन पर आरक्षित वर्ग को आरक्षित वर्ग को पदोन्नति का अवसर देने पर आपत्ति है।
पदोन्नति नियम लागू होने से कई विभागों ने डीपीसी कर ली थी। पदोन्नति की सूची तक तैयार हो गई थी, लेकिन हाई कोर्ट में निर्णय के बाद विभागों ने अब फिलहाल पदोन्नति आदेश निकालने की प्रक्रिया रोक दी है। इससे पहले राज्य निर्वाचन आयोग में तो नए नियमों के तहत दो पदोन्नति सूची भी जारी कर दी थी।
सामान्य वर्ग के अधिकारियों-कर्मचारियों ने पदोन्नति नियम 2002 के आरक्षण संबंधी प्रविधानों के विरोध में हाई कोर्ट जबलपुर में याचिका दायर की थी। वर्ष 2016 में हाई कोर्ट ने नियम को विधि विरुद्ध मानते हुए निरस्त कर दिया था। तब से पदोन्नतियां बंद थीं और कर्मचारी संगठन सरकार पर नए नियम लागू करने को लेकर दबाव बना रहे थे।
सरकार ने विधि विशेषज्ञों और कर्मचारी संगठनों के प्रतिनिधियों से परामर्श करने के बाद नए नियम बनाए लेकिन इसमें भी आरक्षण संबंधी वही सब प्रविधान किए गए जो पहले थे। आरक्षित वर्ग को 36 प्रतिशत आरक्षण देने के साथ अनारक्षित वर्ग के पदों पर पदोन्नति का अवसर भी दिया।
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वहीं, पुराने नियम से जो अधिकारी-कर्मचारी पदोन्नत होकर सामान्य वर्ग से आगे हो गए थे, उन्हें पदावनत भी नहीं किया। जबकि, हाई कोर्ट ने पदावनत करने के लिए कहा था। इसके विरुद्ध सरकार उच्चतम न्यायालय चली गई थी और यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दिए गए थे। तब से न तो पदोन्नतियां हुईं और न ही किसी को पदावनत किया गया।