अंजली राय, भोपाल। एक महिला यात्री अपने दो रिश्तेदारों के साथ गंजबासौदा स्टेशन पर ट्रेन पकड़ने के लिए खड़ी थी। ट्रेन आई तो जिस कोच में उसकी बर्थ आरक्षित थी उसका गेट ही नहीं खुला। ट्रेन चलने पर महिला दूसरे कोच में चढ़ने लगी, लेकिन हड़बड़ी में गिर गई। उसे चोट भी आई। किसी तरह वह अपनी आरक्षित सीट पर पहुंच पाई। महिला को सुरक्षित बैठाने के लिए उसका पति भी ट्रेन में चढ़ गया, लेकिन ट्रेन चलने की वजह से उतर नहीं पाया। उसे भोपाल स्टेशन पर उतरना पड़ा।
महिला ने इस संबंध में रेल प्रशासन से शिकायत की, लेकिन न्याय नहीं मिला। इसके बाद महिला ने जिला उपभोक्ता आयोग में याचिका दायर की। आयोग ने उपभोक्ता के पक्ष में निर्णय सुनाते हुए रेलवे को जिम्मेदार ठहाराया और यात्री को असुविधा के लिए मानसिक क्षतिपूर्ति राशि 15 हजार रुपये और वाद व्यय के लिए 1500 रुपये देने का आदेश दिया।
बता दें कि गंजबासौदा निवासी सीमा जैन ने भोपाल मंंडल के वरिष्ठ मंडल वाणिज्य प्रबंधक (सीनियर डीसीएम) के खिलाफ 2013 में जिला उपभोक्ता आयोग में याचिका लगाई थी। आयोग ने रेलवे को 16,500 रुपये हर्जाना देने का आदेश दिया, लेकिन रेलवे ने इस फैसले के खिलाफ 2013 में राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील कर दी । दिसंबर 2021 में राज्य उपभोक्ता आयोग ने रेलवे की अपील को खारिज करते हुए यात्री के पक्ष में निर्णय सुनाया। आयोग के अध्यक्ष न्यायामूर्ति शांतनु एस केमकर व सदस्य एसएस बंसल की बेंच ने जिला उपभोक्ता आयोग के सुनाए गए निर्णय को सही ठहराया और रेलवे को जल्द से जल्द हर्जाना देने का आदेश दिया।
यह था मामला
यात्री ने आयोग में शिकायत की थी कि उसने 22 दिसंबर 2012 को झेलम एक्सप्रेस में गंजबासौदा से पुणे के लिए बी-1 कोच में तीन सीट आरक्षित की थीं। ट्रेन आने पर बी-1 कोच का गेट बंद मिला। खटखटाने के बाद भी गेट नहीं खुला। ट्रेन चलने पर यात्री बी-4 में हड़बड़ी में चढ़ने लगी। जल्दबाजी में वह गिर गई, जिससे उसे चोट भी आई। बाद में महिला फिर बी-4 कोच में चढ़ी। वह दो रिश्तेदारों के साथ पैर के इलाज के लिए पुणे जा रही थी।
गंजबासौदा में ट्रेन का स्टापेज कम समय के लिए होने के कारण महिला का पति भी सामान रखने के लिए ट्रेन में चढ़ गया तो उतर नहीं पाया। टीसी और कोच अटेंडेंट भी दूसरे कोच में सो रहे थे। उन्हें बेडरोल भी नहीं मिला। इस कारण महिला को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। मामले में रेलवे का तर्क था कि यात्री देर से स्टेशन पहुंची। इस कारण हड़बड़ी में उन्हें दूसरे कोच में चढ़ना पड़ा। इस तर्क को आयोग ने खारिज कर दिया और रेलवे को सेवा में कमी का दोषी ठहराते हुए हर्जाना देने का आदेश दिया।
इनका कहना है
मामले में महिला यात्री की जागरूकता के कारण ही नौ साल बाद इस केस में जीत मिली और आयोग ने रेलवे को उसकी गलती के लिए जिम्मेदार ठहराया। अब रेलवे को हर्जाना देना होगा।
योगेश जैन, उपभोक्ता के वकील