भोपाल, टीम नईदुनिया। कई मायनों में विचित्रताओं से भरी नदी और सबका पालन-पोषण करने वाली नर्मदा की जन्म की कहानी भी कम रोचक नहीं है। नर्मदा के जन्म और पृथ्वी पर अवतरण को लेकर कई मान्यताएं हैं। पहली मान्यता के मुताबिक तपस्या में बैठे भगवान शिव के पसीने से नर्मदा प्रकट हुई। नर्मदा ने प्रकट होते ही अपने अलौकिक सौंदर्य से ऐसी चमत्कारी लीलाएं दिखाईं कि खुद शिव- पार्वती भी चकित रह गए। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस नदी का नामकरण करते हुए शिव ने कहा- देवी, तुमने हमारे दिल को हर्षित कर दिया इसलिए तुम्हारा नाम हुआ नर्मदा।
नर्म का अर्थ है- सुख और दा का अर्थ है- देने वाली। इसका एक नाम रेवा भी है। एक अन्य मान्यता के अनुसार मैकल पर्वत पर भगवान शंकर ने 12 वर्ष की दिव्य कन्या को अवतरित किया। महारूपवती होने के कारण विष्णु आदि देवताओं ने इस कन्या का नामकरण नर्मदा किया। दिव्य कन्या नर्मदा ने उत्तरवाहिनी गंगा के तट पर काशी के पंचकोशी क्षेत्र में 10 हजार वर्षों तक तपस्या करके शिव से कुछ ऐसे वरदान प्राप्त किए जो कि अन्य किसी नदी के पास नहीं है।
भगवान शिव से नर्मदा ने वरदान मांगा कि प्रलय में भी मेरा नाश न हो। मैं विश्व में एकमात्र पापनाशिनी नदी के रूप में प्रसिद्ध रहूं। मेरा हर पाषाण (नर्मदेश्वर) शिवलिंग के रूप में बिना प्राण-प्रतिष्ठा के पूजित हो। मेरे (नर्मदा) तट पर शिव-पार्वती सहित सभी देवता निवास करें। शिव ने ये सभी वरदान नर्मदा को दिए।
यही वजह है कि आध्यात्मिक रूप से नर्मदा को गंगा से भी ज्यादा पवित्र माना जाता है। स्कंद पुराण में नर्मदा के पृथ्वी पर अवतरण की कहानी है। राजा हिरण्यतेजा ने 14 हजार दिव्य वर्षों की तपस्या कर शिव को प्रसन्न किया नर्मदा को पृथ्वी तल पर आने के लिए वर मांगा। शिवजी के आदेश से नर्मदा मगरमच्छ के आसन पर विराजकर उदयाचल पर्वत पर उतरीं और पश्चिम दिशा की ओर बहकर गईं।