
नवदुनिया प्रतिनिधि, भोपाल। भोपाल के कुटुंब न्यायालय में लगी नेशनल लोक अदालत में 100 से अधिक रिश्तों को टूटने से बचाया गया। एक मामले में व्यवसायी पति ने कुटुंब न्यायालय में काउंसलिंग के दौरान अपनी डेढ़ साल की बेटी को गोद में लिया और भावुक हो गया। उससे झगड़ा करके पत्नी मायके चली गई थी। अपने साथ डेढ़ साल की बेटी को भी ले गई थी, पति से मिलने नहीं देती थी। पत्नी ने पति के खिलाफ भरण-पोषण का केस लगाया था।
पत्नी ने कहा कि पति को उसका खर्च उठाना होगा। जबकि पति का कहना था कि अगर मायके में रहेगी तो वह भरण-पोषण नहीं देगा। जज ने पति के गोद में बच्ची को देने के लिए कहा। इसके बाद कई महीनों से बच्ची से अलग रह रहे पिता को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने पत्नी से माफी मांगते हुए समझौते की दरकार की। बच्ची की खातिर पत्नी भी मान गई और दोनों साथ घर गए।
शादी के 16 साल का रिश्ता केवल इसलिए टूटने की कगार पर पहुंच गया, क्योंकि मायके में आई परेशानियों के चलते पत्नी का ध्यान मायके पर केंद्रित हो गया। पति की शिकायत थी कि पत्नी उसका और परिवार का ध्यान न रख मायके की परेशानियों में उलझी रहती है। काउंसलिंग में समझाया कि पति-पत्नी का तालमेल नहीं गड़बड़ाना चाहिए, चाहे कितनी भी विपरीत परिस्थितियां हों। दोनों परिवार के सुख-दुख में बराबर सहयोग होना चाहिए। इसके बाद दंपती खुशी-खुशी साथ घर लौटे।
आठ साल से चल रहे एक मामले में काउंसलिंग के बाद दंपती ने साथ रहने का मन बना लिया। मामला नेशनल लोक अदालत के दौरान कुटुंब न्यायालय पहुंचा था। दंपती के बीच दोनों परिवार के हस्तक्षेप को लेकर विवाद था। दोनों की एक संतान भी है। मामले में जज व काउंसलर ने दंपती को समझाया कि उनकी लड़ाई में बच्चे का भविष्य दांव पर लगा है।
उन्होंने पत्नी से कहा कि ससुराल में सामंजस्य की कोशिश करो, ताकि आपका परिवार जुड़ा रह सके और बच्चे का भविष्य भी अच्छा बने। वहीं पति को समझाया कि पत्नी के हक की बात कहना भी उसकी जिम्मेदारी है। इस तरह समझाने के बाद दंपती ने राजीनामा कर साथ जाने का मन बनाया। ऐसे ही कई मामलों में काउंसलर ने कहा कि बच्चे माता-पिता को जोड़ने वाली कड़ी होते हैं। ऐसे दो मामलों में मासूमों की मुस्कान ने माता-पिता को साथ लाने का काम किया। कुटुंब न्यायालय में 100 से अधिक मामलों में सुलह हुई।
एक दंपती के बीच करीब दो साल साल से विवाद चल रहा था। दरअसल पत्नी बच्चे की डिलीवरी के समय मायके चली गई। उसके बाद से ही पति उसका ध्यान नहीं रखता था। पत्नी का आरोप था कि पति बच्चे के जन्म के बाद से खर्च भी नहीं उठाते थे। मायके वाले ही सबकुछ कर रहे थे। इसे लेकर दंपती के बीच ऐसा विवाद हुआ कि बेटे के जन्म के बाद भी यह जारी रहा।
मायके में डिलीवरी के बाद पत्नी वहीं पर रही और भरण-पोषण का केस लगा दिया। नेशनल लोक अदालत के दौरान पत्नी को समझाया कि डेढ़ साल के बच्चे के बारे में सोचें। बच्चों को माता-पिता दोनों के साथ की जरूरत होती है। इसके बाद रूठी पत्नी मान गई और दंपती के बीच राजीनामा हुआ।