Navratri: भोपाल के कर्फ्यू वाली माता मंदिर का है दिलचस्प इतिहास, नवरात्र में दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु
इमामी गेट से मोती मस्जिद की तरफ जाने मुख्य मार्ग पर बने इस मंदिर के प्रति शहर व आसपास के लोगों में अगाध श्रद्धा है। इस मंदिर में घी एवं तेल की दो अखंड ज्योत जलती हैं। इसके लिए छह माह में 45 लीटर तेल एवं 45 लीटर घी लगता!
By Ravindra Soni
Edited By: Ravindra Soni
Publish Date: Wed, 28 Sep 2022 07:29:59 AM (IST)
Updated Date: Wed, 28 Sep 2022 09:27:16 AM (IST)

भोपाल, नवदुनिया प्रतिनिधि। अब से 41 साल पहले यानी वर्ष 1981 में पुराना शहर कई दिनों तक कर्फ्यू के साए में रहा था। इसके बाद यहां धूमधाम से चौक पर मां भवानी की स्थापना हुई थी। इस वजह से सोमवारा स्थित देवी मंदिर कर्फ्यू वाली माता के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। इमामी गेट से मोती मस्जिद की तरफ जाने मुख्य मार्ग पर बने इस मंदिर के प्रति शहर व आसपास के लोगों में अगाध श्रद्धा है। यहां सुबह से ही भक्त माता के दर्शन के लिए जुटने लगते हैं। नवरात्र के अवसर पर यहां भक्तों की काफी भीड़ उमड़ती है। मंदिर का गर्भ गृह स्वर्ण मंडित है। माता का मुकुट भी सोने का है।
मंदिर का इतिहास
वर्ष 1981 में सोमवारा (पीरगेट) चौराहे के पास चबूतरे पर आश्विन माह की नवरात्र पर जयपुर से लाकर माता की मूर्ति स्थापित कर दी गई थी। छठवीं तिथि के दिन क्षेत्र में मंदिर को लेकर बवाल हो गया। जिसके चलते कर्फ्यू लगाना पड़ा। लगभग एक माह बाद सरकार झुकी और मंदिर स्थापना की अनुमति मिल गई। यहां मंदिर निर्माण की भूमिका बाबूलाल माली (सैनी) एवं पुजारी पंडित श्रवण अवस्थी ने बनाई थी। मंदिर अब भव्य स्वरूप ले चुका है।
जलती हैं दो अखंड ज्योत
इस मंदिर में घी एवं तेल की दो अखंड ज्योत जलती हैं। इसके लिए छह माह में 45 लीटर तेल एवं 45 लीटर घी लगता है। नवरात्र के दौरान यहां विशाल भंडारा होता है। इसमें शहर के अलावा बड़ी संख्या में आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के लोग भी शामिल होते हैं।
सुबह पांच बजे मंदिर खुल जाता है। माता की पहली आरती सुबह साढ़े छह बजे होती है। सुबह नौ बजे दूसरी आरती होती है। दोपहर 12:30 बजे मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं, जो शाम साढ़े चार बजे पुन: खोले जाते हैं। नवरात्र के अवसर पर रात 12 बजे तक लोग दर्शन करने के लिए आते रहते हैं। - पंडित नरेश अवस्थी, पुजारी
माता के दरबार से शहर के लोगों की श्रद्धा जुड़ी हुई है। यहां मन्नत मांगने वाले माता के चरणों में अर्जी लगा जाते हैं। इसके अलावा कलावा भी बांधकर जाते हैं। मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु यथा योग्य चढ़ावा भी चढ़ाते हैं। सुरक्षा के लिए सीसीटीवी लगे हुए हैं। यहां 50 रुपये से अधिक की राशि का दान सिर्फ चेक के माध्यम से ही स्वीकार किया जाता है। - रमेश सैनी, अध्यक्ष मंदिर समिति