भोपाल (नईदुनिया स्टेट ब्यूरो)। प्रदेश में अवैध रेत उत्खनन और उससे नदियों, पर्यावरण, जैव विविधता एवं जलीय जीवों पर पड़ने वाले असर को देखते हुए उत्खनन योजना (माइनिंग प्लान) बनाने का जिम्मा निजी एजेंसी को सौंपा जा रहा है। यह एजेंसी केंद्र सरकार की देखरेख में काम करेगी और रेत भंडारण वाले प्रदेश के 40 जिलों में वैज्ञानिक और तकनीकी आधार पर सर्वे करेगी।
इस दौरान रेत उत्खनन से नदियों, पर्यावरण, जैव विविधता और जलीय जीवों पर पड़ने वाले असर का आकलन किया जाएगा। इस आधार पर एजेंसी पांच साल की रेत उत्खनन योजना बनाएगी और फिर राज्य सरकार उस योजना और शर्तों के मुताबिक रेत खदानें नीलाम करेगी। इससे नदियों से रेत के बेतहाशा उत्खनन पर रोक लगने की उम्मीद की जा रही है।
केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने नदियों से रेत उत्खनन पर विशेष कार्ययोजना तैयार करने की तैयारी कर ली है। मंत्रालय ने खनिज विभाग को इसकी इत्तला दे दी है। यह भी बता दिया है कि रेत खदानों की अगली नीलामी रेत उत्खनन से पर्यावरण पर पड़ने वाले असर के आकलन के बाद ही होगी। हालांकि अभी यह तय नहीं है कि यह आकलन कौन-सी एजेंसी करेगी, पर वर्ष 2023 से इसके प्रभावी होने की संभावना है।
ज्ञात हो कि वर्तमान में जिला खनिज अधिकारी जिले की पांच साल की उत्खनन योजना तैयार करते हैं और कलेक्टर की अध्यक्षता वाली समिति इसका अनुमोदन करती है। इसी आधार पर खदानों की नीलामी होती है। जानकार बताते हैं कि इस परिवर्तन का असर वर्तमान में ठेके लेकर उत्खनन कर रहे ठेकेदारों पर नहीं पड़ेगा। उनके ठेके की अवधि वर्ष 2022-23 में खत्म होगी। इसके बाद नए ठेके नए नियमों के तहत किए जाएंगे। इसके लिए प्रदेश की खनिज नीति में बदलाव भी होगा।
एजेंसी तय करेगी कहां से कितनी रेत निकालें
जिस एजेंसी को रेत उत्खनन से पहले आकलन का जिम्मा सौंपा जाएगा, वही यह तय करेगी कि किस नदी एवं किस घाट से कितनी मात्रा में रेत निकाली जाए। एजेंसी पांच साल की उत्खनन योजना में इसका जिक्र करेगी। नए ठेके देने के बाद खदानों से कितनी रेत निकाली जा रही है, उसकी निगरानी भी एजेंसी करेगी। ये एजेंसी निजी भूमि पर जमा होने वाली रेत की नीलामी को लेकर भी मापदंड तैयार करेगी। एजेंसी जिन नदियों के पर्यावरण प्रभाव का आकलन नहीं कर पाएगी, उनसे रेत भी नहीं निकाली जाएगी।
नदियों की धारा की जगह बदल रही
प्रदेश में बेतहाशा रेत खनन हो रहा है। इससे जलीय जीवों, पर्यावरण और जैव विविधता पर तो असर पड़ ही रहा है, नदियों की धारा भी जगह बदल रही है। यह स्थिति काफी नुकसानदायक है।