भोपाल, नवदुनिया प्रतिनिधि। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के अनुसार भारत समेत दुनिया भर में कुल मानसिक रोगियों में आधे को बीमारी की शुरुआत 14 से 20 साल की उम्र में हो जाती है। इसकी वजह इस उम्र में होने वाले बहुत सारे बदलाव हैं, लेकिन माता-पिता या शिक्षक बीमारी को समझ नहीं पाते। वे इसे स्वाभाविक समझते हैं।
यही वजह है कि डब्ल्यूएचओ ने 10 अक्टूबर को होने वाले मानसिक स्वास्थ्य दिवस की थीम 'युवा और मानसिक स्वास्थ्य एक चुनौती' रखी है। भोपाल भोपाल के मनोचिकित्सकों का कहना है कुल मानसिक रोगियों में 50 फीसदी इसी उम्र के होते हैं, पर इलाज के लिए महज 10 से 15 फीसदी ही पहुंचते हैं।
केस 1- पेट की वजह तनाव
भोपाल के 15 साल के एक बच्चे के माता-पिता उसकी पेट दर्द की शिकायत लेकर शहर के एक बड़े निजी अस्पताल में पहुंचे। यहां पर जांच के बाद पेट की कोई तकलीफ नहीं निकली तो डॉक्टरों ने मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी के पास रेफर कर दिया। मनोचिकित्सक की जांच में सामने आया की पेट दर्द की वजह मानसिक है। दरअसल, बच्चे का पिता शराब पीकर मारपीट व गाली-गलौज करता था। तनाव में बच्चे को पेटदर्द की तकलीफ हो गई। इलाज में ढाई लाख खर्च करने के बाद बीमारी की असली वजह पता चली। डॉ. सत्यकांत के मुताबिक कई मरीज इस तरह की 10 से 20 साल पुरानी शिकायत लेकर आते हैं।
केस 2- चाकू से हाथ की नस काट ली
भोपाल के एक नामी स्कूल में पढ़ने वाले 11वीं क्लास के छात्र ने चाकू से हाथ की नसें काट ली। उसे एक अस्पताल में आईसीयू में भर्ती किया गया। मनोचिकित्सक डॉ.प्रीतेश गौतम ने काउंसलिंग की तो सामने आया कि छात्र 'बाइपोलर मूड डिसआर्डर' नामक बीमारी से पीड़ित है। बच्चे में इस बीमारी की दो वजह थे पारिवारिक समस्याएं व जेनेटिक (बुआ में बीमारी का होना)। अच्छी बात यह थी कि स्कूल के काउंसलर को बीमारी समझ में आई तो उन्होंने मनोचिकित्सक के पास भेजा।
मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी ने बताया कि 14 से 20 साल की उम्र में हार्मोन बदलने से शारीरिक बदलाव आता है। नए रिश्ते बनते हैं। कुछ करने का कौतूहल रहता है। इन्हीं कारणों से मानसिक बीमारियां भी आती हैं। उन्होंने कहा कि उनकी ओपीडी 10-15 फीसदी मरीज ही इस उम्र के आते हैं। वह भी पढ़ाई की समस्या लेकर। डॉ.त्रिवेदी ने मानसिक स्वास्थ्य को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए अभियान शुरू किया है।
मनोचिकित्सक डॉ. प्रीतेश गौतम ने कहा है कि जागरूकता नहीं होने की वजह से माता-पिता बच्चों को समय पर अस्पताल लेकर नहीं आते। उन्हें लगता है चिड़चिड़ापन या गुस्सा होना उसका स्वभाव है। उन्होंने कहा कि माता-पिता या शिक्षक जागरूक हों तो समय पर इलाज शुरू हो सकता है।
प्रदेश में एक करोड़ से ज्यादा मानसिक रोगी
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस (निमहांस) की मेंटल हेल्थ सर्वे 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार मणिपुर के बाद सबसे ज्यादा मरीज (प्रतिशत में) मप्र में हैं। यहां कुल आबादी में 13.9 फीसदी यानी करीब 1 करोड़ मानसिक रोगी है। मरीजों की संख्या के लिहाज से मप्र पहले नंबर पर है। इसी रिपोर्ट के अनुसार मनोचिकित्सक (साइकेट्रिस्ट) के साथ ही मानसिक रोगियों के इलाज से जुड़े अन्य कर्मचारी देश में सबसे कम हैं। प्रदेश में इलाज के लिए सिर्फ 70 मनोचिकित्सक हैं।
ये हो रहा असर
-परिवारों में कलह, तलाक, नशा करने वालों की संख्या बढ़ना, कार्य दक्षता प्रभावित होना, बेरोजगारी, आत्महत्या, विवाद, ब्ल्ड प्रेशर, हार्ट की बीमारियां।
ऐसे पहचाने मेंटल डिसआर्डर को
-बार-बार घबराहट व पसीना आना
- चिड़चिड़ापन, उदासी
- गर्दन में दर्द, पेट खराब रहना
- लोगों से कटा रहना
-कार्यक्षमता कम होना
- ऐसा विचार आए कि जीवन में अभी तक जो हुआ अच्छा नहीं हुआ और आगे भी अच्छा नहीं होगा
-बच्चा स्कूला नहीं जा रहा, नाखून चबाता है, बिस्तर में पेशाब करता है।
- महिलाओं को पीरियड के दिनों में दर्द ज्यादा होना।
ऐसे बचें मेंटल डिसआर्डर से
- फिजिकल हाईजीन की जगह मेंटल हाइजीन पर ध्यान हो। इसमें योग, ध्यान, साहित्य और संगीत से जुड़ाव होना चाहिए।
-तनाव पैदा करने वाले कारण पता कर उनसे दूर रहें
- अपनी क्षमताओं को पहचानें