राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, भोपाल(MP News)। मध्य प्रदेश से सिकल सेल एनीमिया बीमारी को जड़ से समाप्त करने के लिए एक बड़ा काम हुआ है। आमतौर पर आदिवासियों में होने वाली इस बीमारी की पहचान के लिए घर-घर हुई जांच में 29 हजार रोगियों के साथ 2.04 लाख वाहक (कैरिअर) भी मिले हैं। मरीजों में तो लगभग सभी को पीड़ित होने की जानकारी थी, वाहकों को पता ही नहीं था कि उनके भीतर सिकल सेल एनीमिया वाला जीन है।
भले ही उन्हें कोई शारीरिक परेशानी नहीं है, पर उनसे होने वाली संतान के इस बीमारी से पीड़ित होने का खतरा 25 से 50 प्रतिशत तक रहता है। वाहकों को चिह्नित करने के बाद उनका आपस में विवाह रोकने, उनकी संतानों की गर्भ में ही जांच कराकर गर्भपात कराने जैसे प्रयासों से बीमारी को आने वाली पीढ़ी में पहुंचने से रोका जा सकेगा।
बता दें, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2047 तक देश भर से इस बीमारी को समाप्त करने का लक्ष्य रखा है। उन्होंने एक जुलाई, 2023 को शहडोल जिले में आयोजित कार्यक्रम में उन्मूलन का लक्ष्य दिया था।
इसके बाद से ही सभी राज्य आदिवासी जनसंख्या की जांच (स्क्रीनिंग) कर रहे हैं। प्रदेश में पहले 20 आदिवासी बहुल जिलों में 40 वर्ष तक की आदिवासी जनसंख्या की जांच का लक्ष्य रखा गया था। इसके बाद 13 और जिलों को शामिल किया गया।
इस तरह 33 जिलों में एक करोड़ 71 लाख लोगों की घर-घर जाकर खून की जांच की गई। प्रदेश में एक करोड़ 11 लाख लोगों की जांच का लक्ष्य स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग ने रखा था। उन्मूलन मिशन प्रारंभ होने के बाद से उपचार की सुविधाएं भी बढ़ी हैं।
यह एक आनुवंशिक रक्त विकार है, जिसमें शरीर की लाल रक्त कोशिकाएं (आरबीसी) असामान्य रूप से हंसिया (सिकल) आकार की हो जाती हैं। इस कारण वे छोटी रक्त वाहिकाओं में फंस जाती हैं, जिससे रक्त प्रवाह बाधित होता है।
इस कारण शरीर के अंगों तक आक्सीजन नहीं पहुंच पाती। बीमारी का कारण पीड़ित के माता-पिता में दोषपूर्ण हीमोग्लोबिन जीन (एस) है जो बच्चे में पहुंचकर उसे जन्म से ही पीड़ित बना देता है। इसमें खून की कमी, थकान, कमजोरी, हड्डियों, जोड़ों और पेट में दर्द होता है। हाथ-पैर में सूजन भी होती है।
यदि माता-पिता दोनों सिकल सेल रोग के वाहक हैं तो 25 प्रतिशत संभावना बच्चे के रोग से पीड़ित होने व इतनी ही सामान्य होने और 50 प्रतिशत उसके वाहक होने की रहती है। माता-पिता में से एक सिकल सेल रोग का वाहक और दूसरा सामान्य है तो संतान के पीड़ित होने का जोखिम नहीं रहेगा। उसके वाहक या सामान्य होने की संभावना 50-50 प्रतिशत रहती है।
सिकल सेल व्यक्ति में एक वाहक (एएस जीन) और दूसरा पीड़ित (एसएस जीन) होता है। जब माता या पिता प्रत्येक से एक-एक जीन संतान को मिलता है तो इसे सिकल सेल का वाहक कहा जाता है। वाहक को कोई तकलीफ नहीं होती, जिससे उन्हें पता भी नहीं होता। जब वे आपस में विवाह करते हैं तो इस रोग के प्रसार की संभावना बढ़ जाती है। उन्हें विवाह पूर्व सिकल कुंडली मिलाने की समझाइश दी जाती है। सिकल सेल रोग से डरने की नहीं विकृति को समझने की जरूरत है। अब फीटल हीमोग्लोबिन में परिवर्तन के लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग पर काम चल रहा है, जिसमें लैब में नए जीन का निर्माण कर उसे बोनमैरो में प्रतिस्थापित किया जा सकेगा, जिससे बीमारी समाप्त हो जाएगी। - डॉ. एआर दल्ला, सिकल सेल एनीमिया के विशेषज्ञ