भोपाल। शहर में जगह-जगह लगने वाले हाट बाजारों में तरकारी के शौकीन आजकल देसी प्रजाति की सब्जियों की तलाश करते दिखते हैं। वह चमकदार (हाइब्रिड नस्ल) लौकी, गिलकी, करेला, कद्दू को छोड़कर देशी प्रजाति की टेढ़ी-मेढ़ी लौकी और कठोर छिलके वाले छोटे देसी कद्दू खरीदना पसंद कर रहे हैं।
इसकी वजह हाइब्रिड सब्जियों में स्वाद और गंध नहीं होना है। कृषि वैज्ञानिक भी हाइब्रिड सब्जियों के उत्पादन में बेजा पेस्टीसाइड का इस्तेमाल होने पर स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा नहीं बताते हैं।
बिट्टन मार्केट में पिछले 20 वर्ष से सब्जी का कारोबार कर रहे कय्यूम कुरैशी बताते हैं कि उनकी दुकान पर देसी और हाइब्रिज दोनों किस्म की सब्जियां बिकती हैं। पिछले कुछ माह से लोग देसी प्रजाति की सब्जियां खरीदने में अधिक रुचि दिखा रहे हैं। उनके पास अकेले लौकी की तीन से चार किस्म रहती हैं।
इनमें देसी लौकी, तूमा लौकी प्रमुख हैं। यहीं के कारोबारी अरुण कुमार का कहना है कि लोग चमकदार छिलके वाली लौकी, गिलकी, कद्दू के बजाय छोटी नस्ल की टेढ़ी-मेढ़ी लौकी और सख्त छिलके वाले छोटे कद्दू लेना पसंद कर रहे हैं।
रासायनिक खाद, कीटनाशक हैं खतरनाक
प्रगतिशील किसान और विशेषज्ञ मिश्री लाल राजपूत बताते हैं कि 12 महीने हर किस्म की सब्जी का उत्पादन किया जा रहा है। अधिक मुनाफा कमाने के लिए किसान हाइब्रिड किस्मों की तरफ तेजी से आकर्षित हुए हैं। अधिक पैदावार के लिए खेती में बड़े पैमाने पर रासायनिक खाद का इस्तेमाल हो रहा है।
फल-सब्जियों में चमक बरकरार रखने के लिए हानिकारक रसायनों का इस्तेमाल भी किया जाता है। ये रसायने स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। जैविक खाद का इस्तेमाल स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है।
सब्जी और फलों की शाइनिंग पर न जाएं
कृषि विशेषज्ञ और रिटायर्ड कृषि संचालक डॉ.जीएस कौशल का कहना है कि सब्जी की दुकान पर देसी और हाइब्रिड किस्म की सब्जी को पहचान करना मुश्किल होता है। देसी फल में छिलके पर चमक नहीं होती है। उस फल-सब्जी का स्वाद भी अलग होता है। हाइब्रिड किस्म की सब्जियां चमकदार और गहरा रंग लिए होती हैं। उन्हें इस तरह का स्वरूप देने के लिए किसान कई हानिकारक पेस्टीसाइट्स का इस्तेमाल करते हैं। इस तरह की सब्जियों को अच्छी तरह धोकर, छीलने के बाद खाने के लिए उपयोग में लाना चाहिए।