शैलेष बनासा, भोपाल / सागर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। सन् 1956 में 12 फरवरी की एक रात दर्शनशास्त्र के विद्यार्थी चंद्रमोहन जैन मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित विश्वविद्यालय की नजदीकी पहाड़ी पर महुआ के एक पेड़ के नीचे ध्यानमग्न बैठे थे। तभी अचानक उनकी चेतना शरीर से अलग हो गई। शरीर नीचे आ गिरा और उन्हें पता चला कि पेड़ से नीचे गिरा शरीर मैं नहीं हूं। मैं तो वह आत्मा हूं जो इस घटना को साक्षी बनकर देख रही है। इस घटना के बाद दुनिया को मिले आचार्य रजनीश, जिन्हें दुनिया ओशो के नाम से भी जानती है। 19 जनवरी को उनकी 31वीं पुण्यतिथि है। दुनियाभर में फैले उनके अनुयायी उन्हें आज भी याद करते हैं।
मध्य प्रदेश के सागर जिले के मकरोनिया में अब उस पहाड़ी को रजनीश हिल के नाम से जाना जाता है। उस स्थान पर एक शिलालेख में घटना का विवरण दर्ज है। जबलपुर से स्नातक की डिग्री के बाद ओशो स्नातकोत्तर उपाधि लेने सागर विश्वविद्यालय पहुंचे थे। दिन में अध्ययन के बाद रात के समय चंद्रमोहन जैन (ओशो) नजदीक की एक पहाड़ी पर ध्यान करने चले जाते थे। वहीं पर ओशो ने पहली बार शरीर और आत्मा के अलग अस्तित्व को महसूस किया। शरीर से चेतना के बाहर निकलने की घटना को उन्होंने सतोरी नाम दिया। विज्ञान इसे ओबीइ अर्थात आउट ऑफ बॉडी एक्सपीरियंस कहता है।
जन्मस्थल पर संपत्ति विवाद, नहीं होगा कोई आयोजन
ओशो का जन्म मध्य प्रदेश के रायसेन जिला मुख्यालय से करीब 92 किमी दूर ग्राम कुचवाड़ा में 11 दिसंबर 1931 को हुआ था। यहां अब विवादों का डेरा है। उनकी 31वीं पुण्यतिथि पर यहां कोई आयोजन नहीं होगा। उनके शिष्यों ने 2003 में यहां ओशोधाम बनाने की योजना बनाई थी। शिष्य सत्यतीर्थ भारती ने 30 एकड़ जमीन भी खरीद ली थी, किंतु संपत्ति विवाद के कारण योजना विफल हो गई। यह विवाद ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन, कुचवाड़ा ओशोधाम के प्रबंधक रहे स्व. सत्यतीर्थ भारती की पत्नी तथा जापान में रहने वाली ओशो की करीबी शिष्या के बीच चल रहा है। अब आश्रम और अस्पताल पर ताला लटका है। कर्मचारी नेतराम लोधी ने बताया कि इस बार कोविड-19 के कारण न देश-विदेशी शिष्य यहां पहुंचे हैं, न ही कोई आयोजन हो रहा है। बस यहां जापान की महिला अनुयायी यहां आश्रम में पिछले एक साल से रह रही हैं।
इनका कहना है
जबलपुर ओशो की प्रारम्भिक कर्मभूमि के रूप में सदैव गौरव पाता रहेगा। उनके जैसा बुद्ध सदियों में एक आता है और वातावरण को सुरभित कर चला जाता है। जब भी उनकी याद आती है, आंसू बरबस ही निकल आते हैं। उनके जैसा सौंदर्य फिर दूभर हो गया। उनकी वाणी जैसा रस दुर्लभ है।
- स्वामी अगेह भारती, ओशो के प्रिय शिष्य
Posted By: Hemant Kumar Upadhyay
नईदुनिया ई-पेपर पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे
नईदुनिया ई-पेपर पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे
- #Acharya Rajneesh
- #Acharya Rajneesh Osho
- #31st death anniversary of Acharya Rajneesh
- #secret of Bhavsagar
- #sagar of Madhya Pradesh
- #madhya pradesh news