
शशिकांत तिवारी, नईदुनिया, भोपाल। मध्य प्रदेश के तीन जिलों में 24 बच्चों की जान लेने वाले 'कोल्ड्रिफ' कफ सीरप को बनाने में उद्योगों में उपयोग होने वाला प्रोपेलीन ग्लायकाल मिलाए जाने की जांच की जा रही है। दरअसल, इसी आरोप में श्रीसन फार्मा कंपनी की केमिकल एनालिस्ट के. माहेश्वरी को गिरफ्तार किया गया है।
इसी बीच मध्य प्रदेश एसआइटी की जांच में सामने आया है कि कफ सीरप बनाने में उपयोग होने वाले प्रोपेलीन ग्लायकाल का बिल ही कंपनी से गायब है, जबकि एसआईटी की पूरी जांच इसी पर टिकी है कि इस केमिकल के आपूर्तिकर्ता को औषधीय उपयोग वाले प्रोपेलीन ग्लायकाल का आर्डर दिया गया था या औद्योगिक उपयोग वाले का। यदि आपूर्तिकर्ता ने औषधीय की जगह औद्योगिक उपयोग वाला प्रोपेलीन ग्लायकाल दिया होगा, तो उसे भी आरोपित बनाया जा सकता है।
एसआईटी की एक टीम केमिकल एनालिस्ट के. माहेश्वरी को लेकर बुधवार को छिंदवाड़ा जिले के परासिया पहुंची। यहां उसे न्यायालय में प्रस्तुत किया, जहां से तीन दिन के लिए रिमांड पर सौंप दिया गया। पुलिस यहां माहेश्वरी से यह जानने की कोशिश करेगी कि कंपनी में गुणवत्ता जांच में क्या लापरवाही हुई। असली जिम्मेदार कौन है। औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 के नियमों की कहां अनदेखी की गई है।
सूत्रों के अनुसार, एसआईटी ने माहेश्वरी से कोल्ड्रिफ कप सीरप की गुणवत्ता जांच रिपोर्ट मांगी थी, लेकिन वह रिपोर्ट नहीं दी गई। इस बात पर संदेह है कि सीरप की टेस्टिंग कराई गई थी या नहीं। उल्लेखनीय है कि कफ सीरप में डायथिलीन ग्लायकाल (डीइजी) की मात्रा 48.6 प्रतिशत मिली थी, जिसकी मान्य सीमा 0.1 प्रतिशत है। डीइजी के कारण ही बच्चों की जान चली गई। इस मामले में अब तक कफ सीरप लिखने वाले डॉ. प्रवीण सोनी, कंपनी के मालिक जी. रंगनाथन और के माहेश्वरी सहित पांच आरोपितों की गिरफ्तारी हो चुकी है।
विषाक्त कफ सीरप से मृत 24 बच्चों में से 15 परासिया ब्लाक के थे। इस कारण क्षेत्र के लोगों में श्रीसन फार्मा के अधिकारी-कर्मचारियों के विरुद्ध बेहद गुस्सा है। सुरक्षा की दृष्टि से एसआईटी ने बुधवार रात में केमिकल एनालिस्ट के. माहेश्वरी को न्यायालय में प्रस्तुत किया। बता दें कि इसके पहले एसआईटी कंपनी के मालिक जी. रंगनाथन को तमिल नाडु से गिरफ्तार कर छिंदवाड़ा लेकर आई थी।
कोर्ट में प्रस्तुत करने के दौरान भीड़ उमड़ पड़ी थी, जिसमें पीड़ित परिवारों के लोग भी थे। लोग 'फांसी दो' के नारे भी लगाए थे। यही कारण है माहेश्वरी के मामले में पुलिस कोई जोखिम नहीं उठाना चाह रही थी।