भोपाल, ( नवदुनिया प्रतिनिधि )। यदि हम सोचते हैं कि स्वतंत्रता प्राप्ति का संघर्ष एक राजनीतिक संघर्ष था तो यह हमारी भूल है। यह संघर्ष जीवन के हर क्षेत्र का था। इस लड़ाई में विज्ञान ने भी अपनी भूमिका निभाई है। महान वैज्ञानिक जगदीशचंद्र बसु ने अंग्रेजों के एक शैक्षणिक संस्थान में बिना वेतन के अध्यापन किया सिर्फ इसलिए कि गोरे लोग भारतीयों को वहां पढ़ाने लायक नहीं मानते थे। यह उनके द्वारा किया गया सत्याग्रह था। कालखंड के हिसाब से यह चंपारण में महात्मा गांधी द्वारा किए गए सत्याग्रह के पहले का है।
यह कहना है विज्ञान भारती के राष्ट्रीय संगठन मंत्री जयंत सहस्त्रबुद्धे का। वे शुक्रवार को रवीन्द्र भवन में विज्ञान भारती द्वारा आयोजित व्याख्यान में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव के तहत हुए इस व्याख्यान का विषय ‘भारत की स्वतंत्रता में विज्ञान की भूमिका’ था। कार्यक्रम की अध्यक्षता राज्य नीति एवं योजना आयोग के उपाध्यक्ष सचिन चतुर्वेदी ने की है।
अपने उद्बोधन में सहस्त्रबुद्धे ने इतिहास के पन्ने पलटते हुए वर्षवार विस्तृत जानकारी दी। एकदम सहज अंदाज और सरल भाषा में उन्होंने उन तथ्यों के साथ उन वैज्ञानिकों के नाम गिनाये, जिन्होंने अपने कार्यों से विज्ञान की सहायता से देशहित में कार्य किया। उन्होंने बताया कि मुगलों ने हथियारों से हम पर आक्रमण किए, हमारी धरोहरों को नष्ट किया। हमारे पुस्तकालयों को आग के हवाले किया। लेकिन अंग्रेजों ने हम पर हथियारों से आक्रमण नहीं किए बल्कि हमारी ज्ञान परंपरा को योजनाबद्ध तरीके से नष्ट किया। उन्होंने हमारे पारंपरिक ज्ञान की इस तरह आलोचना की कि हमें यह लगने लगा हम पिछड़े हैं। इसके मूल में विज्ञान था। लेकिन हमारे वैज्ञानिकों ने हमारी ज्ञान परंपरा से इसका प्रतिवाद किया। कार्यक्रम का संचालन विज्ञान भारती के डा. अमोघ गुप्ता ने किया। इस अवसर पर विज्ञान मंथन प्रतियोगिता के विजयी प्रतिभागियों को भी पुरस्कृत किया गया।