
नवदुनिया प्रतिनिधि, भोपाल। वर्ल्ड स्ट्रोक डे के अवसर पर एम्स भोपाल ने चौबीसों घंटे सातों दिन एडवांस्ड स्ट्रोक इलाज सुविधा शुरू की है। इससे अब लकवा (पैरालिसिस) जैसी गंभीर विकलांगता को भी मात दी जा सकेगी। इसके लिए एम्स ने टाइम इज़ ब्रेन (समय ही मस्तिष्क है) को मूलमंत्र बनाया है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मरीजों के लिए हर एक पल कीमती होता है, क्योंकि हर मिनट मस्तिष्क की लाखों कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं।
एम्स भोपाल में अब मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी जैसी क्रांतिकारी और न्यूनतम इनवेसिव प्रक्रिया 24 घंटे उपलब्ध होगी। यह एक ऐसी तकनीक है, जिसमें बिना किसी ओपन सर्जरी के पैर या हाथ की नस के रास्ते एक पतली कैथेटर ट्यूब को मस्तिष्क तक पहुंचाया जाता है। इसके बाद डॉक्टर मस्तिष्क की धमनी में फंसे खून के थक्के (क्लॉट) को सीधे बाहर निकाल लेते हैं, जिससे रक्त प्रवाह तुरंत सामान्य हो जाता है। समय पर यह प्रक्रिया होने से मरीज को स्थायी विकलांगता या लकवे से बचाया जा सकता है।
इसके साथ ही संस्थान में सीटी और एमआरआई परफ्यूजन इमेजिंग जैसी अत्याधुनिक निदान तकनीकें भी मौजूद हैं। इन तकनीकों से डॉक्टर वास्तविक समय में यह देख पाते हैं कि मस्तिष्क के किस हिस्से को बचाया जा सकता है, भले ही स्ट्रोक आने के कई घंटे बीत चुके हों। एम्स भोपाल के डीन (एकेडमिक्स) प्रो. डा. रजनीश जोशी ने कहा कि यह सुविधा एम्स में विश्वस्तरीय अकादमिक विशेषज्ञता और प्रैक्टिकल ट्रेनिंग का अनूठा संगम है।
हमारी मल्टी-डिसिप्लिनरी टीम को इस अत्याधुनिक तकनीक पर 24 घंटे काम करने के लिए प्रशिक्षित किया गया है। इस मल्टी-डिसिप्लिनरी टीम में न्यूरोलाजिस्ट, इंटरवेंशनल रेडियोलाजिस्ट, न्यूरोसर्जन और क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ शामिल हैं, जो आपातकालीन स्थिति में मरीज को तुरंत विश्वस्तरीय उपचार प्रदान करने में सक्षम हैं।
एफ – फेस ड्रूपिंग (चेहरा झुकना या टेढ़ा होना) ए – आर्म वीकनेस (एक हाथ में कमजोरी या सुन्नपन) एस – स्पीच डिफिकल्टी (बोलने में कठिनाई या ज़बान लड़खड़ाना) टी – टाइम टू एक्ट (तुरंत अस्पताल ले जाएं)।
स्ट्रोक के लक्षणों की शीघ्र पहचान और मरीज का तुरंत अस्पताल पहुंचना, जीवन बचाने तथा विकलांगता रोकने की असली कुंजी है। इस सुविधा के शुरू हो जाने से मरीजों को विश्वस्तरीय चिकित्सा मिलेगी। डा. माधवानन्द कर, कार्यपालिक निदेशक, एम्स भोपाल।