
प्रवीण मालवीय,भोपाल। नर्मदा नदी में अवैध रेत खनन और तस्करी के चलते इसमें पाए जाने वाले इंडियन टेंट प्रजाति के कछुए विलुप्त होने की कगार पर हैं। नर्मदा-तवा नदी के संगम बांद्राभान के साथ हरदा और खंडवा के आसपास के बहाव क्षेत्र से तो ये पूरी तरह गायब हो गए हैं। यह जानकारी भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (जूलाजिकल सर्वे आफ इंडिया) के विज्ञानियों के सर्वेक्षण में सामने आई है। प्राकृतिक स्वच्छता कर्मी कहलाने वाले कछुए काई और शैवाल आदि खाकर जीवित रहते हैं और पानी में आक्सीजन की मात्रा बढ़ाते हैं।
पर्यावरणविदों ने इस पर चिंता जताते हुए नर्मदा के पूरे बहाव क्षेत्र में कछुओं और उनके रहवास की तलाश कर इनके संरक्षण के प्रयास किए जाने की मांग की है। भारतीय प्राणी सर्वेक्षण के विज्ञानी प्रत्यूष महापात्रा कछुओं पर शोध कर रहे हैं। उन्होंने पांच साल पहले साथियों के साथ जबलपुर से नर्मदापुरम, हरदा और खंडवा के नजदीक के नर्मदा के बहाव क्षेत्र में कछुओं का सर्वे किया था।
इस दौरान उन्हें नर्मदापुरम और खंडवा के नजदीक नर्मदा के कई किनारों पर कछुए दिखे थे। इस वर्ष जनवरी में एक भी कछुआ नजर नहीं आया। प्रत्युष बताते हैं कि नर्मदा में टेंट पेंगासुरुआ टेंटोरिया या इंडियन टेंट टर्टल पाए जाते हैं। ये नर्मदा के पारस्थितिकी तंत्र के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए लग रहा है कि ये कछुए खत्म होने की कगार पर हैं।
अवैध खनन से प्रभावित हो रहा प्रजनन
पर्यावरणविद सुभाष सी पांडेय बताते हैं कि मादा कछुआ रेत में अपने रहवास में अंडे देकर चली जाती है जो गर्मी के असर से सेये जाते हैं। नर्मदा के किनारों में रेत के अवैध खनन से इनके प्रजनन में व्यवधान हो रहा है। रेत ढुलाई के लिए भारी वाहन चलते हैं जिससे कछुओं के अधिकांश अंडे टूट जाते हैं। इसके चलते नर्मदा के कछुए विलुप्ति की कगार पर हैं।
तस्करी की भी आशंका
इसी अध्ययन के मुताबिक इस इलाके में चोरी-छुपे कछुओं की तस्करी भी हो रही है। कुछ स्वयंसेवकों ने बाजार में पूछताछ की तो मछुआरों और विक्रेताओं ने मांग पर कछुए उपलब्ध करा देने की बात कही। यह होती है इंडियन टेंट टर्टल प्रजाति यह कछुओं की भारत और बांग्लादेश में पाई जाने वाली प्रजाति है। यह अब संकट में है इसलिए इसे शेडयूल-वन में रखा गया है। ये ताजे पानी में रहते हैं। मुख्यतः पानी से काई, शैवाल आदि खाते हैं।