शशिकांत तिवारी, नईदुनिया, भोपाल। पिछले छह वर्ष से मध्य प्रदेश की राजनीति में सर्वाधिक चर्चित रहे 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण मामले की सुप्रीम कोर्ट में 22 सितंबर से प्रतिदिन सुनवाई होने जा रही है। कोर्ट का निर्णय जो भी हो पर यह आरक्षण युवाओं के लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है। कारण, वर्ष 2022 के बाद से मप्र पीएससी और कर्मचारी चयन मंडल में 13 प्रतिशत पदों का रिजल्ट होल्ड किए जाने से लगभग 9000 पदों पर नियुक्तियां अटकी हैं। इन पदों के विरुद्ध इतने ही ओबीसी और इतने ही अनारक्षित मिलाकर 18 हजार अभ्यर्थियों की सूची भर्ती एजेंसियों ने तैयार की है।
ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण मिलता है तो यह पद इस श्रेणी से भरे जाएंगे, अन्यथा अनारक्षित श्रेणी से। हालांकि, इन परीक्षाओं में बैठे लगभग 80 हजार अभ्यर्थियों का भविष्य अंधकार में है। रोके गए परिणामों के जारी होने पर वह भी अपने चयन की आशा लगाए हैं। बता दें कि ओबीसी आरक्षण को लेकर सरकार सर्वदलीय बैठक कर चुकी है। सभी पक्षों के वकीलों की भी बैठक हो चुकी है। उल्लेखनीय है कि 27 प्रतिशत के मान से भर्ती की गई, पर परिणाम 14 प्रतिशत के ही जारी किए गए हैं।
मप्र पीएससी और ईएसबी ने भले ही लगभग 9000 पदों के परिणाम रोके हैं, पर इसका असर उन लाखों युवाओं के भविष्य पर है जो चयन के अंतिम पड़ाव पर थे। उदाहरण के तौर पर जिन परीक्षाओं में साक्षात्कार भी हैं उनमें तीन गुना अधिक अभ्यर्थियों को इसमें शामिल किया जाता है। ऐसे में जितने पद होल्ड हैं उसका तीन गुना अधिक अभ्यर्थी चयन की आस लगाए हैं।
अनारक्षित और ओबीसी दोनों वर्ग को शामिल करें तो यह संख्या दोगुनी हो जाती है। परीक्षा परिणाम की प्रतीक्षा में हजारों युवा ओवरएज हो गए। पुलिस आरक्षक, शिक्षक भर्ती सहित कई परीक्षाओं में साक्षात्कार की जगह सिर्फ लिखित परीक्षा होती है। इस लिखित परीक्षा दो से सात लाख तक युवा बैठते हैं जो परिणाम की प्रतीक्षा से परेशान हैं। साथ ही प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं का भविष्य भी निर्णय से प्रभावित होगा।
ओबीसी आरक्षण प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के बीच बड़ा राजनीतिक मुद्दा है। कांग्रेस की तत्कालीन कमल नाथ सरकार ने ओबीसी आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया था। मार्च 2020 में भाजपा सरकार आने पर कांग्रेस हमेशा सरकार पर ओबीसी को 27 आरक्षण देने के प्रति गंभीर नहीं होने की बात कहती रही है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी व विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार कह चुके हैं सरकार की कथनी-करनी में फर्क है। उधर, सरकार की तरफ से मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव खुद कह चुके हैं कि सरकार इसके लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने सर्वदलीय बैठक भी बुलाई थी।
पद कोर्ट के कहने पर होल्ड नहीं किए गए हैं। हालांकि, कोर्ट ने यह कह दिया है होल्ड किए गए पदों पर उन्हीं वर्षों के आधार पर भर्ती की जाएगी, जिसमें अन्य 87 प्रतिशत को किया है। उसे कैरी फारवर्ड नहीं किया जाएगा। उन्हें सभी वेतन-भत्तों का लाभ उसी तिथि से मिलना चाहिए, जिसमें अन्य लोगों को नियुक्ति मिली है। सरकार ऐसा नहीं करती तो इस संबंध में फिर से याचिका लगानी पड़ेगी। - रामेश्वर ठाकुर, ओबीसी महासभा के वकील
मैंने वर्ष 2019 में मप्र पीएससी की परीक्षा दी थी। साक्षात्कार भी दिया था। 13 प्रतिशत पद होल्ड होने से पिछले छह वर्ष से परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे हैं। अब ओवर एज भी हो चुके हैं। युवाओं के साथ यह अन्याय है। - डॉ. वीरेंद्र सिंह, अभ्यर्थी मप्र पीएससी।