बुरहानपुर से युवराज गुप्ता। इंदौर-इच्छापुर हाईवे के किनारे सतपुड़ा की ऊंची पहाड़ी पर ऐतिहासिक व अभेद्य असीरगढ़ का किला स्थित है। इतिहास गवाह है कि आज तक इस किले को कभी भी कोई शासक पराक्रम से नहीं जीत पाया इसलिए यह किला अजेय भी कहलाता है। पराक्रम से इसे जीतना हमेशा मुश्किल रहा हालांकि मुगलों या अंग्रेजों ने जब भी इस किले पर चढ़ाई की तो वे इसे छलपूर्वक ही जीत पाए। इस किले की खास पहचान यहां का महाभारतकालीन पुरातन शिव मंदिर है।
इतिहास के जानकार मेजर डॉ. एमके गुप्ता एवं होशंग हवलदार के मुताबिक असीरगढ़ के किले में पुरातन शिव मंदिर के अलावा जामा मस्जिद, चर्च, मुगलों व अंग्रेजों के जमाने का बारूदखाना, कारावास, अस्तबल, टकसाल, फांसीघर, कोर्ट, स्क्वेश हॉल, रेस्ट हाउस, तालाब आदि स्थित है। यहां पर लंबे समय तक मुगल शासकों एवं अंग्रेजों ने राज किया। यह किला करीब तीन किलोमीटर के दायरे में फैला है। इस पर शासन करने वाले शासकों ने समय-समय पर अपनी आवश्यकता के अनुरूप इसमें कई नए निर्माण करवाए। उसमें फेरबदल भी किया।
ब्रिटिश सेनाएं यहां पर करती थी ट्रेकिंग का अभ्यास : इतिहास के जानकारों के अनुसार ब्रिटिश सेनाएं आर्मी की एक प्रसिद्ध नॉट एट के अभ्यास के लिए विशेष रूप से यहां आती थीं। यहां सैनिक ट्रेकिंग (चढ़ाई) का अभ्यास करते थे। पहाड़ी पर काफी ऊंचाई पर बना यह किला ट्रेकिंग के लिए भी अपना अलग महत्व रखता है। ट्रेकिंग के लिए यह सबसे उपयुक्त स्थल भी है।
खुदाई में निकली थी गुफाएं
उल्लेखनीय है कि दो साल पूर्व पुरातत्व विभाग द्वारा शिव मंदिर के सामने कुएं की सफाई की गई तो वहां पांडवकालीन गुफाएं निकलीं। ये गुफाएं भीतर ही भीतर कुछ प्रमुख स्थलों की ओर जाती हैं। इन गुफाओं में सात विशेष द्वार भी है जो तलहटी की ओर खुलते हैं। इन गुफाओं पर शोध जारी है।
अश्वत्थामा के आने व पूजन करने की किवदंती : इतिहास के जानकारों के मुताबिक ऐसी किवदंती है कि असीरगढ़ के किले में स्थित पुरातन शिव मंदिर में शिवलिंग के रूप में विराजमान भगवान महादेव का पूजन करने के लिए महाभारत काल के अश्वत्थामा यहां पर आते हैं। ब्रह्ममुहूर्त में सबसे पहले पूजन करके जाते हैं। यहां पर मंदिर के दरवाजे खुलते ही शिवलिंग पर ताजा फूल चढ़े हुए मिलते हैं। अश्वत्थामा अर्जुन के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे। किवदंती के हिसाब से इस किले को जब हम अश्वत्थामा से जोड़ा जाता है तो यह विचारणीय हो जाता है कि इस किले का कितना पुरातन महत्व है। इसे संरक्षित किया जाना चाहिए। गौरतलब है कि असीरगढ़ में दो पुरातन शिव मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि दोनों ही शिव मंदिर महाभारतकालीन है। एक शिव मंदिर किले के नीचे हाईवे के किनारे है तो दूसरा किले के शिखर पर है।
शिव मंदिर की दीवारों, छत पर लगाया जाएगा रासायनिक लेप
काली काई के कारण संरक्षण के अभाव में उपेक्षित हुए इस शिव मंदिर की पुरातत्व विभाग ने अब सुध ली है। इस मंदिर का केमिकल वॉश कराकर इसे केमिकल से ढंका जाएगा ताकि इसकी पुरातन शैली की सुंदरता हमेशा बनी रहे तथा यह संरक्षित रहे। भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण के सहायक संरक्षक सुभाष कुमार ने बताया कि किले में स्थित शिव मंदिर के केमिकल वॉश व रासायनिक लेपन के लिए प्रस्ताव बनाकर विभाग के वरिष्ठ कार्यालय को भोपाल भेजा गया है। विभाग की रसायन शाखा यह काम करेगी। केमिकल वॉश के बाद यह रासायनिक लेप लगने से बारिश का पानी भी दीवार व गुंबद पर असर नहीं कर सकेगा। बारिश का पानी सीधे बह जाएगा। पानी की बूंदे दीवारों पर नहीं टिकेगी। जिससे काई जमने या खार टिकने की समस्या नहीं रहेगी। मंदिर भी साफ सुथरा दिखेगा। दूर से ही इसकी चमक दिखाई देगी।