ऐसा माना जाता है कि एक समय छिंदवाड़ा जिला "छिंद" (खजूर-ताड़) के पेड़ों से भरा हुआ था, और उस स्थान का नाम "छिंद" - "वाड़ा" (वाड़ा का अर्थ है स्थान) था। एक और कहानी यह भी है कि शेरों की आबादी के कारण, यह माना जाता था कि इस जिले में प्रवेश करना शेरों की मांद के प्रवेश द्वार से गुजरने के समान है। इसलिए इसे "सिंह द्वार" कहा जाता था। कालांतर में यह "छिंदवाड़ा" बन गया। आजादी के बाद ''नागपुर'' को छिंदवाड़ा जिले की राजधानी बनाया गया और 1 नवंबर 1956 को छिंदवाड़ा को राजधानी बनाकर इस जिले का पुनर्गठन किया गया। भारिया और गोंड आदिवासियों के निवास के रूप में विश्व विख्यात जंगल और घाटी के नीचे बसा पातालकोट छिंदवाड़ा में ही है। इसके साथ ही सौंसर स्थित जाम सांवली मंदिर भी यहां की पहचान है।
छिंदवाड़ा में संतरा, कपास, मक्का और चिरोंजी की बड़े पैमाने पर पैदावार होती है, सब्जियों की खेती में भी छिंदवाड़ा जिला समृद्ध है, खेती में किसान हमेशा ही उन्नत पैदावार कर जिले का नाम रोशन कर रहे हैं। जिले में 11 नदियों का उदगम है, जिसमें पेंच, कन्हान का नाम प्रमुख है। सौंसर में स्पेशल एकानामिक जोन (सेज)स्थापित है, जो आर्थिक गतिविधि को गति दे रहा है।
छिंदवाड़ा से निकटतम हवाई अड्डा नागपुर हवाई अड्डा है। नागपुर और भारत के अन्य प्रमुख हवाई अड्डों के बीच कई उड़ानें उपलब्ध हैं। छिंदवाड़ा तक भोपाल, जबलपुर के माध्यम से भी पहुंचा जा सकता है, जो भारत के अन्य प्रमुख शहरों से हवाई मार्ग द्वारा भी जुड़ा हुआ है। नागपुर, भोपाल, जबलपुर पहुंचने के बाद सड़क या रेल मार्ग से ही छिंदवाड़ा पहुंचा जा सकता है। छिंदवाड़ा में एक सुस्थापित रेलवे नेटवर्क है। छिंदवाड़ा शहर से निकटतम रेलवे स्टेशन छिंदवाड़ा जंक्शन है। सड़क मार्ग के जरिए छिंदवाड़ा तक सड़क मार्ग द्वारा नागपुर (दूरी 125 किलोमीटर), जबलपुर (दूरी 215 किलोमीटर) या भोपाल (दूरी 286 किलोमीटर) से पहुंचा जा सकता है। इन शहरों से छिंदवाड़ा शहर को जोड़ने वाली टैक्सियां और बसें भी आसानी से उपलब्ध हैं।