
सुनील गौतम
दमोह। दिव्यांगों के उत्थान के लिए शासन सामाजिक न्याय व निशक्त कल्याण विभाग के माध्यम से करोड़ों, अरबों रुपये खर्च कर कार्य कर रही है और शारीरिक दिव्यांगता से जूझते महिला, पुरुष चाहे हाथ, पैर से दिव्यांग हो या मूकबधिर या शरीर के कि सी अन्य हिस्से से कमजोर उन्हें दिव्यांगता की श्रेणी में माना जाता है, लेकि न इसके विपरीत एक बड़ी विसंगती यह भी है कि एक आंख से दृष्टिहीन महिला पुरुष को आज भी दिव्यांगता की श्रेणी में नहीं माना जाता है। जिससे इन लोगों को आज भी समस्याएं तो हैं, लेकि न सुविधाएं आज भी नहीं है। विश्व दिव्यांग दिवस पर चर्चा की गई इस तरह की दिव्यांगता से जूझ रहे लोगों से और जाना उनका दर्द व विचार-
लगातार प्रयास कि ए कानून बनाने के लिए-
एक आंख से दृष्टिहीन तखैयुल कु रैशी ने बताया कि अपनी इस परेशानी को समझते हुए उन्होने शासन प्रशासन को कई पत्र, आवेदन व शिकायतें लिखी कि इस विषय पर गंभीरता से सोच कर उनके लिए भी सुविधाएं दी जाएं, लेकि न कोई भी कार्यवाई आज तक नहीं हुई।
लोगों के लिए दिव्यांग पर शासन के लिए नहीं-
प्रकाश द्विवेदी बताते है कि एक आंख से दृष्टिहीन होने के चलते वह लोगों की नजरों में दिव्यांग ही माने जाते हैं, लेकि न यदि शासन की नजरों में देखा जाए तो वह दिव्यांग नहीं हैं। ऐसी स्थिति में उनकी पीड़ा और भी बढ़ जाती है।
शासकीय नौकरियों में हो गए अयोग्य
राजेश व्यास का कहना है कि सेना, पुलिस सहित कई ऐसी नौकरियां है जिनमें एक आंख से दृष्टिहीन होने के चलते उन्हें स्पष्ट रुप से अयोग्य माना जाता है, लेकि न वहीं जब दिव्यांग होने की बात सामने आती है तो उन्हें सामान्य दिव्यांगता ही मान लिया जाता है।
समाज का हिस्सा बनने में परेशानी-वहीं इस शारीरिक दिव्यांगता से पीडि़त फै मिदा बानो का कहना है कि इस दिव्यांगता के चलते वह समाज का हिस्सा पूरी तरह से नहीं बन पाती। लोग ना भी कहें तब भी इस दिव्यांगता का अहसास होता है।
इनका कहना है :
यह बात सही है कि समाज में और शासन स्तर पर इनको कि सी भी प्रकार का कोई लाभ नहीं मिल पाता है मैं सामाजिक एवं न्याय मंत्री को पत्र लिखकर इस मामले में शीघ्र ही निर्णय लेने का पक्ष रखूंगा।
प्रहलाद पटेल, कें द्रीय राज्य मंत्री।