मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में दमोह जिला सागर संभाग के अंतर्गत आता है। यहां पर रवि व खरीफ की फसलें उत्पादन के परिधि में आती हैं। जिले में सुनार, व्यारमा और कोपरा नदी के अलावा कुछ अन्य छोटी नदियां भी निकलती हैं। दमोह जिले की स्थापना 1 नवंबर 1956 को की गई थी। इसके पहले दमोह जिले के अंतर्गत सागर तहसील के रूप में था फिर उसके बाद सागर जिले की दमोह तहसील थी। लेकिन फिर पुन: सीमन में सागर और दमोह जिला अलग-अलग स्वरूप में जिला बना।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार दमोह जिले की कुल आबादी 12 लाख 64 हजार 219 है। वहीं जिले में 1229 गांव है। वर्तमान में जिले की चारों विधानसभा दमोह, हटा, पथरिया, जबरा के मतदाताओं की संख्या 9 लाख 43 हजार 174 है। दमोह एक संसदीय क्षेत्र के रूप में भी है जिसमें सागर जिले की तीन रहली, देवरी, बंडा एवं छतरपुर जिले की एक बड़ा मलहरा सहित दमोह जिले की चारों विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। दमोह जिला पन्ना, छतरपुर, सागर, नरसिंहपुर, जबलपुर, कटनी जिले की सीमाओं से जुड़ा हुआ है। दमोह जिला रेल मार्ग के रूप में सबसे पुराना क्षेत्र है एवं मध्य प्रदेश में पहला ऐसा स्टेशन या रेल मार्ग था जो इलेक्ट्रिक रूप में प्रारंभ हुआ था। क्योंकि कोयला परिवहन के लिए छत्तीसगढ़ से कटनी बीना ट्रैक होने के कारण इसका विद्युतीकरण मध्य प्रदेश में सबसे पहले हुआ था। दमोह स्टेशन माडल स्टेशन के साथ-साथ वर्तमान में अमृत भारत योजना के तहत भी शामिल किया गया है।
प्रसिद्ध तीर्थ स्थल जागेश्वर नाथ धाम बांदकपुर जो समूचे बुंदेलखंड के साथ-साथ प्रदेश में भी हिंदुओं का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। वहीं समूचे भारत देश में प्रसिद्ध जैन तीर्थ कुंडलपुर भी दमोह जिले में ही स्थापित है। इसके अलावा पुरातत्व के क्षेत्र में भी दमोह जिले में काफी मठ एवं किले के रूप में सिंगोरगढ़ का किला तथा पयर्टन के क्षेत्र में सिग्रामपुर क्षेत्र के निदान,नजारा आदि के साथ रानी दुर्गावती वन अभ्यारण भी दमोह जिले के लिए प्रसिद्ध स्थान बना हुआ है।
प्रदेश का सबसे बड़ा नौरादेही अभयारण्य दमोह जिले की सीमा में भी आता है और यहां रहने वाले बाघ जिले के जंगल में आए दिन दिखाई देते हैं। साथ ही रानी दुर्गावती अभयारण्य और नौरादेही अभयारण्य को मिलाकर प्रदेश का सातवा टाईगर रिजर्व बनाने का प्रयास भी चल रहा है। इसके अलावा रानी दमयंती की नगरी के नाम से दमोह की स्थापना की गई थी। जिले के स्वतंत्रता आंदोलन में दमोह जिले की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका रही है। 1857 की क्रांति से लेकर स्वतंत्र भारत तक जितने भी आंदोलन हुए उसमें दमोह जिले की भूमिका काफी रही। राजा किशोर सिंह से लेकर अनेक ऐसे राजा एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हुए जिन्होंने भारत देश को स्वतंत्र करने में अपनी अहम भूमिका निभाई।