Maha Shivratri 2023 : सुनील गौतम (नई दुनिया दमोह)। बुंदेलखंड के विंध्य पर्वत की श्रेणियों का तलहटी में बीना- कटनी रेल मार्ग पर दमोह से 17 किलोमीटर दूर स्थित बांदकपुर ग्राम में धार्मिक सिद्धक्षेत्र जागेश्वर धाम स्थित है। मंदिर में भगवान शिव का स्वयंभू लिंग प्रतिष्ठित है जिसके दर्शन तथा पूजन से श्रद्धालु भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। अत: यह स्थल सिद्ध पीठ के रूप में प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र को राम की दक्षिण यात्रा से जोड़ते हुए 1:30 सदीपुर में रचित भैरव प्रसाद नेमा ने अपने जागेश्वर रहस्य नामक ग्रंथ में एक दोहे में लिखा था।
याही पग होकर गए, दंडक वत श्री राम
जहां शिव पूजन किया, अरु कीन्हों विश्राम।
आज से लगभग 325 वर्ष पूर्व मराठा राज्य के दीवान बालाजी राव चांदोरकर जिनका मुख्यालय दमोह था। एक दिन रथ यात्रा करते हुए बांदकपुर आए और बर्तमान इमरती कुंड में स्नान कर पूजन में मग्न थे कि भगवान शिव जी ने दर्शन दिए और कहा कि वटवृक्ष के पास जहां घोड़ा बंधा हुआ है। उसके नीचे उत्खनन करके मुझे भूमि से ऊपर लाने का प्रयास करो।
ध्यान समाप्त होने पर बालाजी राव ने उस स्थल की खुदाई कराई जहां काले भूरे पत्थर का शिवलिंग दृष्टिगत हुआ। कहा जाता है कि 30 फीट तक खुदाई करने पर भी शिवलिंग का अंत नहीं दिखाई दिया। तब खुदाई रोक दी गई। फिर आसपास 12 फीट की नींव देकर मंदिर का निर्माण कराया गया। गर्भ स्थल में प्रवेश करते ही यह स्पष्ट दिखता है कि इस मंदिर में मूर्ति का स्थान ठीक नीव के बाहर की भूमि की गहराई पर स्थित है
भगवान जागेश्वर की मूर्ति जमीन की सतह पर है। शिवलिंग को भेंट करते समय बाद दोनों बाजुओं में नहीं समाता। मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व की ओर है। पूर्व द्वार से जागेश्वर मंदिर से लगभग 100 फीट की दूरी पर पश्चिम की ओर जननी मां पार्वती की मूर्ति इस अद्भुत ढंग से विराजमान है कि उनकी दृष्टि सीधी आकर भगवान जागेश्वर की मूर्ति पर पड़ती है। इसके बीच में ही विशाल नंदी मठ स्थित है। नंदी गढ़ ऊंचाई में होने पर भी दोनों के दर्शन स्पष्ट दिखते हैं।
नंदीमठ के पास है अमृत कुंड, इमरती बावली है जिसमें ट्रस्ट कमेटी ने सीड़िया लगा दी हैं एवं विद्युत पंप लगाकर ऊपर पानी की व्यवस्था की है। इस बावड़ी में गंगोत्री, जमनोत्री, नर्मदा नदी आदि पवित्र नदियों का जल यात्रीगण छोड़ जाते हैं। यह पवित्र जल ही शिवलिंग पर चढ़ा कर गंगा जली में घर ले जाते हैं। यात्रीगण गंगाजल के साथ कांवर भी चढ़ाते हैं। अपनी मनोकामना पूर्ण करने हेतु यात्रीगण श्रद्धालु भक्तगण हल्दी के हाथ दीवाल पर हाथ लगाते हैं और पूर्ति होने पर पुन: आते हैं। कावर के यात्रीगण नर्मदा तट से जल लाकर श्रद्धा पूर्वक भगवान शिव को चढ़ाते हैं। मंदिर परिधि में शिव पार्वती मंदिर के अलावा श्री भैरवनाथ मंदिर, राम लक्ष्मण जानकी मंदिर, हनुमान मंदिर, सत्यनारायण मंदिर भी हैं। यहां यज्ञ भी होता है जिसके लिए पूर्व में अस्थाई यज्ञ मंडप बनाया जाता था असुविधा की दृष्टिगत रखकर वर्ष 1955 में ट्रस्ट के तत्कालीन सचिव डॉक्टर शंकरराव मोझरकर ने जयपुर के कारीगर बुलाकर स्थायी यज्ञ मंडप का निर्माण कराया था।
जागेश्वर मंदिर की सिद्धि से जुड़ी कुछ घटनाएं पूर्वज बताते हैं कि उनके अनुसार सवा लाख का कावरों का जल शिव पार्वती पर अर्पित होने पर दोनों मंदिर के स्वर्ण कलशों पर लगी पताकायें आपस में मिल जाती हैं। इसका उल्लेख दमोह गजेटीयर में भी है। कहा जाता है कि 18वीं सदी के अंत में एक दिन एक बालिका देव पूजन हेतु आई भक्तों की भीड़ में धक्कों के कारण फिसल कर पानी में गिर कर मौत हो गई। तब श्रद्धालु भक्तों ने महादेव की मूर्ति के समक्ष उसका शव रखकर उनकी स्तुति की और बालिका जीवित हो उठी। इसका विशद वर्णन जागेश्वर रहस्य में उलेखनीय है। इसी प्रकार 15 जनवरी 1938 को सोमवार के दिन दोपहर 2 बजे भूकंप के झटकों के पश्चात महादेव जी के मंदिर की विशाल स्वर्ण कलश से आधा इंच की जलधारा लगभग 15 मिनट तक निकलती रही।
मंदिर की दिनों दिन बढ़ती प्रसिद्धि और श्रद्धालु भक्तों के आगमन को देखते हुए सन 1932 एक फरवरी को न्यायाधीश जबलपुर द्वारा 21 सदस्यों का एक ट्रस्ट बनाया गया। फिर 20 मार्च 1933 को न्यायाधीश के निर्णय से इस संस्था का साग्निक स्वामित्व करके 6 नवम्बर 1933 को योजना का निर्माण कर के प्रबंध हेतु कमेटी को सौंपने का निर्णय लिया। उसी के अनुसार आज भी मंदिर का प्रबंध ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है। मंदिर ट्रस्ट द्वारा सत्यनारायण कथा, कावर पूजन, मुंडन व्यवस्था कर्मचारियों द्वारा कराई जाती है। शिव पूजन हेतु पुजारी एवं मंदिर के पंडित गण उपस्थित रहते हैं। शिव पूजन हेतु स्थानीय पुजारी वर्ग का पैतृक अधिकार होता है। मंदिर की व्यवस्था के लिए कर्मचारी नियुक्त हैं। ट्रस्ट का चुनाव 3 वर्ष में होता है। दो हिंदू महासभा सागर, दो हिंदू महासभा जबलपुर तथा दमोह बांदकपुर क्षेत्रों के सदस्य के साथ साथ दो सदस्य चांदोरकर परिवार से रहते हैं।
क्षेत्र की व्यवस्था वर्ष 1979 तक ग्राम पंचायत की ओर से तत्कालीन जनपद पंचायत के सब इंजीनियर दुर्गा प्रसाद गौतम देखते थे। उसके पश्चात शासन ने बांदकपुर में मंदिर ट्रस्ट और विकास प्राधिकरण की व्यवस्था की थी। मंदिर ट्रस्ट में करीब 125 एकड़ भूमि है जिसमें कुछ में खेती और कुछ में मेला भरता है। दुकानदारों से किराया लिया जाता है। ट्रस्ट द्वारा एक संस्कृत विद्यालय भी चलाया जा रहा है।
जागेश्वर धाम में महाशिवरात्रि पर्व पर सर्वाधिक भक्तगण आते हैं। ग्रामीण भक्तगण बंबुलिया गाते आते हैं। कंधों पर कावर रखकर जय जय घोष करते हैं तो संपूर्ण वातावरण भगवान मय हो जाता है। इनके सुरीले कंठ से जब निकलता है
दरस की तो बेरा भई रे बेरा भई रे पट खोलो छबीले मेरे लाड़ले
दरस की अरे हो और जब शिव जी से भेंट करते हैं तो महादेव बब्बा ऐसे मिले रे ऐसे मिले रे जैसे मिल गए महतारी बाप रे महादेव बाबा हो।
तो संगीत की एक अलौकिक अनुभूति होती है। यहां पर देश, प्रदेश के शहरों के अलावा विदेशों से भी यात्री गण आकर अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं।