अब भी परंपरा कायम, सबसे पहले जलाई जाती है होलीपुरा की होली, यहां से अग्नि ले जाकर शहर में जलाई जाती है अन्य होलियां
फोटो 02 होलीपुरा पर गड़ा होली का डांडा ।
दतिया। नईदुनिया प्रतिनिधि
शहर के होलीपुरा मोहल्ले में होली जलाने की परंपरा ठीक 150 साल पुरानी है। बताते है कि सन 1860 के लगभग दतिया रियासत के महाराजा भवानी सिंह जूदेव ने होलीपुरा पर होलिका दहन की परंपरा शुरू की थी। तब से इस मोहल्ले का नाम होलीपुरा पड़ा। महाराज भवानी सिंह के बाद भी यह परंपरा महाराज गोविंद सिंह, बलभद्र सिंह व कृष्णसिंह जूदेव ने भी निभाई बाद में राज परिवार के सदस्यों ने होलीपुरा में आयोजित होने वाले होलिका दहन कार्यक्रम से दूरी बना ली।
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माघ की पूर्णिमा को राजा भिजवाते थे होली का डांडा-
होलिका दहन से ठीक एक महीने पूर्व माघ पूर्णिमा को होली का डांडा गड़ता है। रियासत काल में होली का डांड़ा राजपरिवार के निवास प्रतापगढ़ दुर्ग से महाराज द्वारा भिजवाया जाता था। यहां तक कि होलिका दहन के लिए कंडा व लकड़ी की व्यवस्था भी किले से होती थी। होली के लिए लकड़ी जंगल से कटवाई जाती थी। होलिका दहन के दिन होली की पूजा के लिए किला परिसर से बग्गी में बैठक राज परिवार के सदस्य होलीपुरा पर होलिका दहन के लिए पूजन सामाग्री, पारंपरिक पकवानों से सजे थाल लेकर दरबारियों के साथ आते थे। यहां राज पुरोहित द्वारा होली पूजन कराया जाता था। जिसमें दतिया शहर के सभी नागरिक शामिल होते थे। मोहल्ले के बुजुर्ग रामशरण खरे रम्मी दादा की माने तो राज परिवार के सदस्य होलिका दहन के तय मुहूर्त पर होलीपुरा पहुंचते थे, तथा राज पुरोहित द्वारा विधि विधान से होली की पूजा वैदिक मंत्रोच्चारण से कराई जाती थी। होलीपुरा की होली जलने के बाद यहां से अग्नि ले जाकर ही शहर में अन्य स्थानों की होली जलती थी।
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अब मोहल्ले के लोग आपसी सहयोग से जलाते हैं होली-
150 साल बाद आज भी यह परंपरा जीवित है। प्रतिवर्ष होलिका दहन के तहत पहली होली होलीपुरा पर जलाई जाती है। इसके बाद शहर में अन्य स्थानों पर होलिका दहन किया जाता है। अब से करीब 30 साल पहले होली का डांड़ा गड़ने के बाद से ही अलग अलग मोहल्लों से टोलियां आस पास के जंगलों से झाड़ झक्कड़ काटकर होली के डांड़े के पास जुटाना शुरू कर देते थे तथा होड़ यह रहती थी कि सबसे ऊंची होली किस मोहल्ले की है। धीरे- धीरे यह रिवाज अब खन्म हो गया। अब होलिका दहन के दिन ही ज्यादातर मोहल्लों में लकड़ी कंडे खरीद कर होली सजाई जाती है। शहर में मुख्य रूप से गोविंद गंज, किला चौक, तिगैलिया, बिहारी जी मार्ग, मातन का पहरा, पुरानी जेल के भैरव, हनुमान ग़ढ़ी, बुंदेला कॉलोनी, न्यू हाऊसिंग वोर्ड कॉलोनी, भदौरिया की खिड़की, पकौड़िया महादेव, नजयाई बाजार, रिछरा फाटक, भांडेरी फाटक, टाउनहाल, ठंडी सड़क, हड़ा पहाड़, रेलवे स्टेशन एरिया, सेंवढ़ा चुंगी, भरतगढ़, आनंद टाकीज, दांतरे की नरिया, छोटा बाजार, कुईयाुपरा आदि स्थानों पर होलिका दहन शहर वासियों द्वारा किया जाता है।