नईदुनिया प्रतिनिधि, दतिया। शहर के स्कूलों में ही फायर सेफ्टी सिस्टम का पालन नहीं हो पा रहा। हालत यह है कि स्कूल का मध्याह्न भोजन पिछले एक वर्ष से उसी कमरे में पकाया जा रहा है, जहां पर बच्चों की क्लास भी लगती है। आधे कमरे में किचन और उसी आधे कमरे में शिक्षक छोटे-छोटे बच्चों को हर रोज अध्ययन कराते हैं। जबकि नियमानुसार स्कूल किचन, अध्ययन कक्षों से अलग बनी होना चाहिए, ताकि किसी भी आपात स्थिति में कोई जानमाल का वहां नुकसान न हो। जिला मुख्यालय पर ही इन नियमों का उल्लंघन हो रहा है।
एक तरफ अस्पताल, होटल, दुकानों सहित अन्य जगहों पर फायर सेफ्टी सिस्टम जांचने के लिए प्रशासन ने पूरी टीम मैदान में उतार रखी है, जहां आगजनी से बचने के लिए तमाम नियम-कायदे संबंधितों को समझाए जा रहे हैं, लेकिन खुद के संस्थानों में इसका कितना पालन हो रहा है, यह देखने के लिए शायद जिम्मेदारों को फुरसत नहीं है।
शिक्षण संस्थाओं में जहां छोटे-छोटे बच्चे हर रोज पढ़ने आते हैं, उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी संबंधित विभाग की बनती है। सरकारी स्कूलों में व्यवस्थाओं को लेकर वैसे ही आम नजरिया ठीक नहीं है। ऐसे में रही-सही कसर विभाग के अधिकारियों की अनदेखी पूरी कर देती है।
रिछरा फाटक स्थित इस प्राथमिक विद्यालय में लगभग 127 बच्चे अध्ययनरत हैं। यहां बने तीन कमरों में एक कमरा प्रधानाध्यापक और स्टाफ के लिए हैं। बचे दो कमरों में स्कूल चलता है। इनमें से एक कमरे में ही जहां एक कोने में बच्चों को पढ़ाया जाता है, उसी कमरे के दूसरे कोने में रसोई बनी हुई है। जहां हर रोज बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन तैयार होता है।
खाना बनने के दौरान उठने वाले धुएं से अक्सर छोटे बच्चों को परेशानी होती है। बच्चे धुएं की वजह से सर्दी-खांसी और एलर्जी से पीड़ित हो रहे हैं। साथ ही धुएं का बुरा प्रभाव बच्चों के आंखों पर भी पड़ रहा है। स्कूल का वातावरण देखकर पालक अपने बच्चों को इस सरकारी स्कूलों में दाखिला दिलाने से ठिठकने लगे हैं।
स्कूल के एक ही कमरे में क्लास और किचन संचालित किए जाने के बारे में मामला संज्ञान में आया है। इसे लेकर जल्दी ही व्यवस्था कराई जाएगी। साथ ही जिला पंचायत के माध्यम से प्रस्ताव बनाकर वहां अतिरिक्त कक्ष का इंतजाम कराएंगे। ताकि कोई परेशानी न हो।
- अखिलेश राजपूत, बीआरसी दतिया।
यहां काम करने वाली रसोइया महिला का कहना था कि पिछले दो वर्ष से ऐसे ही काम चल रहा है। यहां कोई देखने वाला नहीं है। हमेशा हादसे की आशंका भी बनी रहती है, कहीं खाना बनाने के दौरान आग जैसी घटना न हो जाएं। इस समस्या को लेकर विद्यालय की प्रधानाध्यापक सायरा बानाे ने वरिष्ठ अधिकारियों को भी लिखा, लेकिन अभी तक इस ओर कोई व्यवस्था नहीं की गई है।
रिंग रोड निर्माण के दौरान इस स्कूल की जो पुरानी इमारत ढहाई गई थी, उसमें किचन शेड के साथ ही पानी आदि का भी इंतजाम था। ऐसा स्कूल के स्टाफ का कहना है। वर्तमान में जो भवन बनाकर स्कूल के लिए दिया गया है, उसमें किचिन शेड की व्यवस्था ही नहीं की गई। इसके चलते किसी तरह वहां जोखिम उठाकर काम चलाया जा रहा है।
स्टाफ के मुताबिक वर्तमान में स्कूल में पानी के लिए भी इंतजाम नहीं है। ऐसे में पांच सौ रुपये व्यय का पानी का टेंकर डलवाना पड़ता है। यह क्रम हर तीसरे रोज किया जाता है। बताया जाता है कि स्कूल के लिए नल कनेक्शन तो दिया गया था। वह भी टूट जाने पर अभी तक दुरुस्त नहीं हो सका। इसके कारण टैंकर से यहां पानी की व्यवस्था कराई जा रही है।
किसी भी स्कूल की क्या दशा होगी जहां एक ही कमरे में बच्चों को पढ़ाने के साथ वहीं एक कोने में खाना पकाया जाता हो, लेकिन यह जोखिम रिछरा फाटक के इस स्कूल में हर रोज उठाया जाता है। शहर के ही स्कूल की ऐसी दशा होना शिक्षा विभाग के जिम्मेदारों की कार्यशैली पर सवाल खड़े करती है।
अगर कभी क्लास रूम में चल रहे किचन में आगजनी जैसा कोई हादसा हो जाएं तो वहां मौजूद बच्चे और स्टाफ के लिए तो जान का संकट खड़ा हो जाएगा। इसे लेकर अभी तक कोई सुरक्षा प्रबंध यहां नहीं कराए गए हैं।