देवास से उदय मंडलोई। जिला मुख्यालय से 38 किमी दूर गंधर्वपुरी की वर्तमान पहचान तो एक कस्बे के रूप में है लेकिन कभी यह राजा गंधर्व सेन की राजधानी हुआ करती थी। अब भरोसा करना मुश्किल है पर शकों को हराने वाले राजा गंधर्व सेन की राजधानी यही गंधर्वपुरी थी। बाद में इस साम्राज्य के राजा बने विक्रमादित्य ने उज्जैन को राज्य की राजधानी बना दिया। कस्बे का इतिहास लगभग 2100 साल पुराना है। यहां शिल्पकला के कई नमूने जगह-जगह बिखरे हुए हैं। इतिहासकार मानते हैं कि सरकार को यहां की सुध लेकर शोध अध्ययन केंद्र बनाना चाहिए। इतिहासकार जीवन सिंह ठाकुर बताते हैं कि गंधर्वपुरी उस समय मालवा का सबसे बड़ा व्यापारिक और राजनीतिक केंद्र रहा। वर्तमान का सोनकच्छ उस समय स्वर्णकच्छ नाम से जाना जाता था। देवास जिले के ही नागदा गांव में भी मौर्य काल के पुरातात्विक प्रमाण मिले हैं।
यहां मौजूद मूर्तियां आज भी न केवल बेहद आकर्षित करने वाली हैं बल्कि समृद्ध इतिहास की कहानी भी कहती हैं। वर्तमान में गांव की संकरी गलियों से होकर पुरातत्व विभाग द्वारा बनाए गए संग्रहालय तक पहुंचा जा सकता है। यहां खुले मैदान में बड़ी संख्या में उस दौर की मूर्तियां रखी हुई हैं। इसमें कई तीर्थंकर, चामुंडा, शेषशायी विष्णु सहित अन्य कई देवताओं की मूर्तियां हैं। कृष्ण जन्म की भी एक सुंदर मूर्ति है।
इन मूर्तियों को चारदीवारी बनाकर रखा तो गया है लेकिन धूप-पानी से बचाने के इंतजाम नहीं हैं। मूर्तियां लगातार टूट-फूट रही हैं। हालांकि कुछ मूर्तियों को एक कमरे में सहेजकर भी रखा गया है। जानकारों का कहना है कि प्रचार-प्रसार के अभाव में गंधर्वपुरी के इतिहास से भी कम ही लोग परिचित हैं। ऐसे में यहां पर्यटन की दृष्टि से आने वाले लोगों की संख्या भी सीमित है। ग्रामीणों का कहना है सरकार चाहे तो इसे अच्छे पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित कर सकती है। यही नहीं, सोनकच्छ से गंधर्वपुरी तक के रास्ते के दोनों तरफ ऊंची-ऊंची पहाड़ियां भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं।