
नईदुनिया प्रतिनिधि, देवास। सुरों की असंख्य सभाओं का साक्षी रहा मल्हार स्मृति मंदिर सभागार शनिवार को सांगीतिक विविधतों को समेटे हुआ था। रागों में लिपटकर आई इस सांझ की खुमारी ऐसी थी कि बादलों ने भी हाजिरी लगाई। सुरीले आलापों से हुआ भगवती का सुमिरन और बंदिशों के प्रवाह में बहता चला गया जन-मन। कर्नाटक शैली के संगीत में साज की सुंदरता की झलक दिखी तो लयबद्ध तालों का स्पर्श पाकर बांसुरी के स्वर मुखरित हुए। मेघों ने दस्तक दी और सांगीतिक फुहारों से मौसम सुहाना हुआ।
सुरमयी सांझ का यह नजारा था मल्हार स्मृति मंदिर सभागार का, जहां शनिवार से पं. कुमार गंधर्व संगीत समारोह की शुरुआत हुई। पहले दिन नई दिल्ली की सुधा रघुरामन का शास्त्रीय गायन हुआ। अगली सभा में तेजस-मिताली विंचुरकर ने बांसुरी-तबले की जुगलबंदी की।
साथ ही उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी के निदेशक जयंत भिसे, कलेक्टर ऋषव गुप्ता, कुमारजी की पुत्री ख्यात शास्त्रीय गायिका कलापिनी कोमकली, गायक भुवनेश कोमकली सहित संगीत प्रेमी उपस्थित रहे। मंत्री लोधी ने कहा कि पं. कुमार गंधर्व का स्थान संगीत की दुनिया में इतना ऊंचा है कि उसे छू पाना बड़ा कठिन है।

गायन के बाद तेजस-मिताली विंचुरकर ने अपनी संगीत साधना की अमिट छाप छोड़ी। राग चंद्रकौंस से आगाज हुआ। ओठों के स्पर्श से बांसुरी के स्वर मधुरता के साथ सभागार में बिखरे, जिन्हें मिताली ने तबले की तालों से साधा और सुर-ताल का एक युगल सफर सुरीली राहों की ओर बढ़ता गया।
समारोह का यह मध्यांतर था और मेघों ने गर्जना कर अपनी हाजिरी लगाई। शुरुआत में जहां गर्मी और उमस ने सताया तो मध्यांतरण में फुहारों ने मिठासभरी महफिल में ठंडक घोली।
बांसुरी से निकली तान और तबले की तालों ने एक तिलिस्म रचा, जिसने वातावरण को सुरीला बनाया। इधर स्वरों की मिठास बढ़ी उधर वर्षा की फुहारें गिरीं। सुरों की अभिवादन करने पहुंची फुहारों में संगीतप्रेमी भीगते गए और देह को छूकर सुर रूह में उतरते गए।
आंखें मूंदकर हर कोई इन लम्हों को दिलों में संजोता रहा। राग चंद्रकौंस की गंभीरता धीरे-धीरे विलंबित से होकर द्रुत लय तक पहुंची और गत के रूप में एक अनूठी तान विस्तारित हुई।
तबले की तिहाइयों और तिरकिट के सामंजस्य से सुरों से सजी सभा सुरीली होती गई। संगीत मनीषी कुमारजी के नाम से हो रहे संगीत समारोह में उन्हें प्रणाम करते हुए उन्हीं की बंदिश को बांसुरी से श्रोताओं तक पहुंचाया। तीन ताल में निबद्ध इस बंदिश ने कुमारजी की गायकी की झलक भी दिखाई।
सभागार की दहलीज पर दस्तक देते बादलों की पुकार सुन तेजस-मिताली ने अपनी संगीत साधना से सोज की खूबसूरती को मेघों तक पहुंचाया। पहाड़ी धुन सुनाकर सबको बांसुरी-तबले की जुगलबंदी से सभी का मन मोहा।