देवास। 'कब तक वसुंधरा पे कोई इस तरह जीए, अपने वतन में ही जो पतन का जहर पीए। इस तरह ना अमन वतन को है कभी मिला, चलता रहेगा ऐसे ही पतन का सिलसिला'।
कोटा राजस्थान के कवि जगदीश सोलंकी की कविता 'बदनाम बस्ती' की इन्हीं पंक्तियों के लिए श्रोता आधी रात तक कुशाभाऊ ठाकरे स्टेडियम में आयोजित कवि सम्मेलन में डटे रहे। जिस श्रोता ने पहले कभी श्री सोलंकी को नहीं सुना उसे भी यकीन हो गया कि बदनाम बस्ती के लिए आधी रात तक इंतजार किया जा सकता है। हालांकि साढ़े 10 बजे शुरू हुए कवि सम्मेलन के कुछ शुरुआती कवि और कवियत्री बेस्वाद रहे। बावजूद इसके लिए श्रोता देर तक कवि श्री सोलंकी को मंच से प्रत्यक्ष सुनने के लिए टिके रहे।
दामन में लिए बैठी हैं बदनाम बस्तियां
जैसे ही श्री सोलंकी ने माइक संभाला श्रोताओं ने भी लगातार बदनाम बस्ती की लगातार मांग की। श्री सोलंकी ने बदनाम बस्ती की जब आगे की पंक्तियां पढ़ी तो आयोजन स्थल तालियों से गूंज उठा। उन्होंने पढ़ा मिलती रहेगी धूल हवाओं के शोर में, गिरते रहेंगे फूल आंधियों से भौर में, लुट जाएंगी कलियां ये खुद माली के हाथ से, शाखों की दुश्मनी हुई है पात-पात से, यह दौर यहां खत्म कभी हो न पाएगा, यह दौर हमेशा वतन का सर झुकाएगा, इस दौर के जज्बात में एक जात बनी है, सौगात साहूकारों की एक रात बनी है, चांदी सी चमकती है ये अनजान हस्तियां, दामन में लिए बैठी हैं बदनाम बस्तियां।
श्री सोलंकी के पहले ग्वालियर के हास्य व्यंग के कवि प्रदीप चौबे ने श्रोताओं को अपनी कविताओं से खूब गुदगुदाया। उन्होंने श्राद्घ, लालू, शिक्षक और बच्चों के छोटे-छोटे किस्से सुनाकर व्यवस्थाओं पर हास्य व्यंग किया। उनके पहले हरियाणा के अरूण जैमिनी ने अपनी हास्य कविताओं में हरियाणा की विशेषताओं को विभिन्न रंगों पेश कर श्रोताओं की खूब दाद बटोरी।
शशिकांत यादव ने भी अच्छी निभाई। कवियात्रियों में शालिनी सरगम ने निराश किया, जबकि ममता शर्मा ने फिल्मी गानों की पैरोड़ी पर रचनाएं सुनाकर कुछ देर जरूर मनोरंजन किया। संचालन गजेंद्र सोलंकी ने किया।
विश्व विजेता होगा अपना हिंदूस्तान
ओजपूर्ण रचनाओं के लिए देशभर में पहचाने जाने वाले देवास के कवि देवकृष्ण व्यास ने राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत कविता सुनाकर महफिल का मिजाज बदल दिया। श्री व्यास ने अपनी प्रखर वाणी में सुनाया -'गर्व हो अतीत पर, वर्तमान जीत कर, स्वर्णिम भारतवर्ष के भविष्य बन जाइये। नेत्र त्रय खोले दो और जय बोल दो। सत्य शिव सुंदर का वाक्य बन जाइये। खोल दो ये चोटियां, बांध लो ये मुट्ठियां। चंद्रगुप्त सुप्त है चाणक्य बन जाइये। काश्मीर तो अपना है और अपना है पाकिस्तान एक दिन विश्व विजेता होगा अपना हिंदूस्तान।'
इन्होंने पढ़ा
गजेन्द्र सोलंकी-जुग-जुग से कल-कल कर बहता गंगा-जमुना का पानी, भारत भूमि में जन्म लिया है बस अपनी यही है निशानी।
व्यंगकार प्रदीप चौबे- गेहूं कट जाता है, पीस जाता है और रौंदा जाता है, भूख मिटाने की हसरत में रोटी अंगारों पर पड़ते खुशी से फूल जाती है।
मनोज गुर्जर ने सुनाया-हम जहां रहते हैं वहां से ही हास्य उठाते हैं।
कवयित्री शालिनी सरगम ने अपनी गजल में दिलवाले आंखों की बातें समझ लेते हैं सपनों में मिल जाए तो मुलाकात समझ लेते हैं।
शंभूसिंह मनहर ने सुनाया-रोम रोम में बोले वंदे मातरम् दे दे मातृभूमि का एक जाप, दे दे माँ केशरिया बाना करे देश धारण।
अरूण जैमिनी ने हरियाणवी चुटकुलों एवं व्यंगों के साथ सुनाया-बच्चों में बचपन, जवानी में यौवन, अंधों को कंधे, परोपकारी नानी दादी की कहानी, प्यार के दो पल।
कवयित्री ममता शर्मा ने अपनी गीत गजल में -चांदनी चांद से फिर लिपट जाएगी ये अंधेरे की चादर सिमट जाएगी।
जगदीश सोलंकी ने अपने गीत में सुनाया अपने जख्म किसी को मत दिखाना, लोग यहां पर हाथों में नमक लिए बैठे हैं।
शशिकांत यादव-वादा जो किया वह दिल से निभाना जी। गीता, गंगा, गौरी पर संकट न आए कोई, गो माता की हत्या को तुरंत रूकवाना जी।