नेमावर । यह शरीर हम सभी का हर पल मर रहा है, क्यों न उसकी पहचान करें ,जो कभी नहीं मरता है।उसे ही आत्मानुभूति, आत्मानंद, आत्मस्वरुप, आत्मशक्ति, आत्मशांति के नाम से जाना जाता है।भगवान जी की सच्ची भक्ति ही मुक्ति का साधन है।क्षणिक सुख , मिश्रित सुख, दुख मिला हुआ सुख है। हमें चाहिए बिना दुख वाला सुख, शांति आनंद तो परमात्मा ही दे सकता है।क्योंकि परमात्मा अविनाशी, नित्य , शाश्वत, सत्य, सुख स्वरूप है।प्रभु से जो मिलता है सुख शांति आनंद उसका कभी नाश नहीं होता है।संसार की वस्तु , व्यक्ति, पदार्थ नाशवान है। शरीर के साथ-साथ आत्मा का ध्यान महत्वपूर्ण बात है।पृथ्वी पर सत्संग की प्राप्ति स्वर्ग से बढ़कर है।
यह बात पंडित भगवती प्रसाद तिवारी ने भगवात कथा के दौरान रविवार को पहले दिन कही। उन्होंने भागवत माहात्म्य, भक्ति, ज्ञान, वैराग्य और आत्मदेव , गोकर्ण प्रसंग, धुंधकारी उद्धार की कथा को आध्यत्मिकता से सुनाया । परमात्मा के बनाऐ संपूर्ण जगत में प्रत्येक जीवात्मा सुख शांति आनंद को प्राप्त करना चाहता है।श्री मद्भागवत के आचार्य श्री सतगुरु शुकदेव मुनि जी महाराज ने राजा परीक्षित जी को समझाया , परम पिता परमात्मा पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर के प्रति अत्यंत श्रद्धा और भक्ति से एकाग्र चित्त होकर नित्य ध्यान, साधना, नाम स्मरण करना चाहिए। प्रत्येक मनुष्य मात्र हमेशा दिनभर और जीवन भर शान्त , प्रसन्ना , संतुष्ट रहना चाहता है। मृत्यु याद दिलाती है, अमृत की खोज करो ,जिसकी कभी मृत्यु नहीं होती है, उस अमर , नित्य ,शाश्वत आत्मा को जानने का प्रयास करो।शरीर विनाशी है और आत्मा अविनाशी है। हमारी मृत्यु का सबसे बडा कारण बीमारी नहीं, दुर्घटना नहीं, बुढ़ापा नहीं है, हमारा जन्म होना ही मृत्यु का कारण है। जन्म ना हो तो मृत्यु नहीं होगी ।ऐसा कुछ सत्कर्म किया जाए जिससे हमारा जन्म ही ना हो। भागवत कथा के प्रारंभ के पहले कलश यात्रा निकाली गई।