Chaitra Navratri 2023 : 184 गांवों की कुलदेवी हैं बाग की मां बाघेश्वरी, श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है पहाड़ी पर मंदिर
मां बाघेश्वरी के प्रतिदिन बाल्यावस्था, दोपहर में युवावस्था व संध्या के समय वृद्धावस्था के दर्शन होते हैं।
By Hemant Kumar Upadhyay
Edited By: Hemant Kumar Upadhyay
Publish Date: Wed, 29 Mar 2023 06:06:08 PM (IST)
Updated Date: Thu, 30 Mar 2023 11:02:35 AM (IST)

Chaitra Navratri 2023 : बाग (धार)। बाग के समीप मुख्य मार्ग की पहाड़ी पर बाघेश्वरी माता का मंदिर है, जो मालवा के साथ निमाड़ के श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। 184 गांवों की कुलदेवी के रूप में मां बागेश्वरी की मूर्ति को मान्यता प्राप्त है। शारदेय और चैत्र नवरात्र में निमाड़ के अलावा महाराष्ट्र से बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन और मन्नत के लिए आते हैं। यह राजा मोरध्वज की कुलदेवी रही हैं।
इतिहास
बाघेश्वरी मंदिर के निर्माण की तिथि का सही-सही आकलन दस्तावेजों में नहीं है और न ही इसके इतिहास के बारे में कोई अधिकृत जानाकरी उपलब्ध है। इसके बावजूद पुरातात्विक दृष्टि से इसकी रचना चार से पांच हजार वर्ष पूर्व की बताई जाती है। इससे जुड़ी किंवदंतियों के अनुसार इसे महाभारत कालीन माना जाता है। मंदिर का संबंध ग्वालियर रियासत के सिंधिया परिवार से रहा है।
नौ खंडों में गर्भगृह
मंदिर का गर्भगृह एवं सभा मंडप आज भी मूल रूप में है। सभा मंडप की रचना नौ दुर्गा के कारण नौ खंडों में विभक्त है। मंदिर के शिखर पर सन 1997 में स्वर्ण कलश की स्थापना के बाद मंदिर और मूर्ति के प्रति विश्वास की जड़ें और गहरी हो गईं। मां बाघेश्वरी के प्रतिदिन बाल्यावस्था, दोपहर में युवावस्था व संध्या के समय वृद्धावस्था के दर्शन होते हैं। कई भक्त बाघेश्वरी माता के चमत्कारों को अपने-अपने अनुभव के आधार पर करते हैं।
भक्तों की मन्नत होती है पूरी
श्रद्धालु मन्नत के लिए मां से प्रार्थना करते हैं। विशेष रूप से संतान प्राप्ति के लिए बाघेश्वरी मां की पहचान बन चुकी है। इस कारण मालवा- निमाड़ के अलावा महाराष्ट्र व गुजरात के श्रद्धालु मन्नत पूरी करने यहां आते हैं। इस कारण वर्ष दर वर्ष श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती जा रही है।
-राम शर्मा, पुजारी
दक्षिणमुखी बाघ पर सवार
मंदिर में माता बाघेश्वरी की तेजस्वी मूर्ति दक्षिणमुखी बाघ पर सवार है। दुर्गा शप्तशती के कवच पाठ में मां बाघेश्वरी का वर्णन है। शप्तशती में माताजी को त्वचा की रक्षक कहा गया है। मां के नाम पर ही गांव और पूर्व वाहिनी बाघनी नदी का नाम है।
महेश राठौड़, भक्त