प्रेमविजय पाटिल, नईदुनिया, धार। मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले इंदौर की रेल कनेक्टिविटी आज भी ‘डेड एंड’ पर अटकी हुई है। वर्षों पहले शुरू की गई इंदौर-दाहोद रेल परियोजना, जो महाराष्ट्र को मध्यप्रदेश होते हुए गुजरात से जोड़ेगी, 70 प्रतिशत काम पूरा हो जाने के बाद भी न्यायालयीन विवादों में उलझी है। करीब 204 किलोमीटर लंबी इस रेल लाइन से इंदौर से मुंबई की दूरी कम होगी और मुंबई, गुजरात व मध्य प्रदेश को एक नया रेल मार्ग भी मिलेगा।
परियोजना का सबसे बड़ा रोड़ा जमीन अधिग्रहण और मुआवजा विवाद है। पीथमपुर से लेकर तिरला तक ही लगभग 900 प्रकरण न्यायालयों में लंबित हैं। इतनी संख्या में प्रकरण लंबित होने से रेल परियोजना की रफ्तार कई जगह रुक गई है। किसानों और जमीन मालिकों की आपत्तियां राजस्व न्यायालय से लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुकी हैं। इन विवादों के चलते कई स्थानों पर निर्माण कार्य रुक गया है।
यह परियोजना मध्य प्रदेश के साथ-साथ गुजरात और महाराष्ट्र के लिए भी महत्वपूर्ण है। मध्य प्रदेश को इस परियोजना के पूरा होने का दोहरा लाभ यह है कि डेड एंड पर मौजूद इंदौर को सीधे गुजरात के लिए नए रास्ते से कनेक्टिविटि मिल जाएगी। पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र के कंटेनर भी बडौदरा होते हुए मुंबई तक जल्दी पहुंच सकेंगे।
इससे उद्योगों को अपनी सामग्री भेजने के लिए तेज और सस्ता परिवहन माध्यम तो मिलेगा ही सड़क मार्ग पर निर्भरता कम होने से परिवहन लागत भी कम हो जाएगी। इस मार्ग से इंदौर से मुंबई की दूरी भी 55 किमी कम हो जाएगी। वर्तमान में इंदौर से मुंबई का सफर करने के लिए 830 किलोमीटर की दूरी तय करना होती है जो रतलाम के रास्ते होती है।
रेलवे ने पीथमपुर से धार तक का ट्रायल दिसंबर 2025 तक करने का लक्ष्य रखा था, लेकिन लगातार चल रहे विवाद और अब वर्षा के कारण भी काम प्रभावित है। जमीन की बढ़ती कीमतें, मुआवजे को लेकर असहमति और न्याय की अपेक्षाएं यही तीन बड़े कारण हैं जिनसे यह महत्वाकांक्षी परियोजना अटक गई है। ऐसे में रेलवे को ट्रायल की समय सीमा बढ़ाना पड़ेगी।
अधिग्रहित क्षेत्र की जमीन की रजिस्ट्री की तीन साल की दरें देखी जाती हैं। इन तीन सालों में हुई सबसे अधिकतम दर को आधार मानकर मुआवजा तय होता है। अधिवक्ता सुनील रघुवंशी ने बताया कि किसानों की मांग है कि जिस तरह सरकार ने पीथमपुर क्षेत्र में लाजिस्टिक हब के लिए गाइडलाइन में बदलाव किया था, वैसे ही प्रयास इस मामले में भी जरूरी हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता विशाल बाहेती के अनुसार भू-अर्जन रेलवे अधिनियम के तहत किया जाता है। इसके लिए मार्केट रेट के हिसाब से मुआवजा देना होगा। मुआवजे का भुगतान करने के बाद ही जमीन अधिग्रहित की जा सकती है। इसके बाद ही कब्जा लेने की प्रक्रिया होगी। चूंकि यह मामला जनहित से जुड़ा है, इसलिए कानूनन रेलवे को जमीन अधिग्रहित करने का अधिकार है।
रेल प्रशासन सभी मुद्दों पर कर रहा काम
इंदौर दाहोद रेल परियोजना का कार्य तय प्रक्रिया के तहत हो रहा है। रेल प्रशासन सभी मुद्दों पर लगातार काम कर रहा है। - खेमराज मीणा, पीआरओ रेल मंडल रतलाम