नवाचार : उद्यानिकी खेती में किसान दिखा रहे रुझान, कम खर्च में भाव मिलते हैं अच्छे
राजगढ़। निज प्रतिनिधि
क्षेत्र में इन दिनों खेती को लेकर नए-नए प्रयोग होने लगे हैं। परंपरागत खेती से इतर होकर किसानों ने कुछ ऐसा भी करने का प्रयास किया है जो न सिर्फ उनकी आय को, बल्कि विकासखंड के नाम को आगे बढ़ाए। इस फेहरिस्त में समीपस्थ ग्राम पीपरनी व हनुमंत्या काग के किसानों ने कलौंजी नामक मसाले की खेती करना शुरू किया है। विकासखंड स्तर पर ग्राम राजोद में तरबूज की खेती में भी लोगों ने रुचि दिखाई है। इन सबसे हटकर किसानों ने लहसुन का रकबा उद्यानिकी विभाग की उम्मीद से तीन गुना कर दिया है। इन सब मामलों में यदि सकारात्मक परिणाम आए तो निश्चित तौर पर विकासखंड का नाम जिले में छा जाएगा।
परंपरागत खेती से हटकर खेती करने का चलन अब बढ़ने लगा है। लोग गेहूं-चने के साथ ही कुछ ऐसी फसलें भी लगाने लगे हैं, जिसका बाजार में न सिर्फ भाव अच्छा है, बल्कि उनके उत्पादन में ज्यादा समय, पैसा और पानी भी खर्च करने की जरूरत नहीं होती। समीपस्थ ग्राम पीपरनी के पांच से सात किसानों व हनुमंत्याकाग के एक किसान ने अपने खेत में इस बार कलौंजी का रोपण किया है। इसके पौधे के बीज मसाले के रूप में उपयोग होते हैं। बाजार में इसकी खरीदारी बेहतरीन स्तर पर होती है।
ज्यादातर इसकी मांग मध्यप्रदेश में मंदसौर-नीमच तरफ ज्यादा रहती है। कलौंजी की खेती करने वाले पीपरनी के किसान फूलचंद सिर्वी ने गत वर्ष भी कलौंजी की बोवनी की थी और बेहतर उत्पादन लिया था। यह बात उद्यानिकी विभाग की जानकारी में आई तो उसने ग्रामीणों को इसकी खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया। लिहाजा पीपरनी में ही करीब पांच से सात किसान इसकी खेती कर रहे हैं। वहीं हनुमंत्या काग में भी इसकी खेती एक व्यक्ति ने शुरू की है।
टमाटर पर नोटबंदी का असर
एक तरफ जहां सुकून भरी खबर है, तो दूसरी तरफ दर्दभरी दास्तां भी। इस बार क्षेत्र में टमाटर का जमकर उत्पादन तो हुआ, लेकिन इसके खरीदार नहीं मिल रहे। लिहाजा, किसानों को नुकसान हो रहा है। विभागीय सूत्रों के मुताबिक नोटबंदी की वजह से परेशानी आई है। यहां का टमाटर गुजरात-दिल्ली से लेकर राजस्थान तक जाता था, लेकिन परिवहन में नोटबंदी के असर ने टमाटर की खेती करने वाले किसानों का रंग फीका करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
ऐसा होता है कलौंजी का बाजार
जानकारों के मुताबिक कलौंजी एक प्रकार का मसाला होता है। इसके उत्पादन में ज्यादा पानी, समय और पैसा खर्च नहीं होता है। एक बीघा में इसका उत्पादन करीब चार से पांच क्िवटल तक हो जाता है और इसकी कीमत प्रति क्िवटल करीब 10 से 12 हजार रुपए आती है। धार के किराना व्यवसायी गोपाल पाटीदार ने बताया कि कलौंजी का बाजार इस क्षेत्र में कम ही रहता है, लेकिन यह जावरा, नीमच, मंदसौर वाले इलाके में ज्यादा बिकती है।
...तो लहसुन का होगा बंपर उत्पादन
इस बार किसानों ने लहसुन के उत्पादन में ज्यादा रुचि दिखाई है। इसी का नतीजा है कि पिछली बार की तुलना में करीब तीन गुना ज्यादा रकबा लहसुन का बढ़ा है। उद्यानिकी विभाग की मानें तो पिछले साल जहां लहसुन महज 100-150 हेक्टेयर में बोई गई थी, वहीं इस बार इसका रकबा 300 हेक्टेयर से अधिक हो गया है। मौसम की अनुकूलता रही तो क्षेत्र से लहसुन का उत्पादन बंपर मात्रा में होगा। इसका कारण बताते हुए जानकार कहते हैं कि गत वर्ष लहसुन 8 से 10 हजार रुपए प्रति क्िवटल बिका था। लिहाजा किसान इस तरफ आकर्षित हो गए हैं।
कम खर्चे में बेहतर मुनाफे वाली है कलौंजी
पीपरनी के किसान फूलचंद सिर्वी ने बताया कि कलौंजी का उत्पादन एक बीघा में करीब तीन से चार क्िवटल होता है। इसे पकने में करीब चार महीने का वक्त लगता है। वहीं ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती। लगाने में भी कोई विशेष खर्च नहीं आता। उन्होंने बताया कि एक बीघा में दो किलो बीज लगता है। इस बार बीज की कीमत 200 रुपए प्रति किलो थी। सिर्वी ने करीब 6 बीघा में कलौंजी बोई है। उन्होंने यह भी बताया कि इसका न्यूनतम मूल्य जहां 10 हजार रुपए प्रति क्िवटल होता है, तो कई बार यह 12 से 13 हजार रुपए ंिक्वटल तक बिकता है। गत वर्ष यह 28 हजार रुपए प्रति क्िवटल में बिका था।
फायदे का सौदा
कलौंजी की खेती फायदे का सौदा है। पीपरनी और हनुमंत्या काग के किसानों ने इसकी खेती की है। राजोद में तरबूज की खेती भी की जा रही है तो लहसुन का रकबा भी इस बार करीब तीन गुना हो गया है। टमाटर जरूर थोड़ा परेशान कर रहा है, लेकिन अन्य फसलें बेहतर पैमाने पर हैं।-लीलाधर वर्मा, एसडीओ, उद्यानिकी विभाग, सरदारपुर