कुक्षी (मध्यप्रदेश)। मध्यप्रदेश की कुक्षी विधानसभा सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है। 1952 से 2013 तक 15 बार चुनाव हुए हैं। इसमें एक उपचुनाव भी शामिल है। 12 बार यहां कांग्रेस जीती है। जबकि भाजपा दो बार और एक बार जनसंघ को जीत मिली। 2013 के चुनाव में कांग्रेस के सुरेंद्रसिंह हनी बघेल ने 42 हजार 768 मतों से रिकॉर्ड जीत हासिल की थी। इस बार स्थिति को देखा जाए, तो भाजपा ने हाल ही में हुए डही और कुक्षी नगर परिषद के चुनाव में एकतरफा जीत हासिल की है। चूंकि यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है इसलिए अन्य जाति फैक्टर का यहां ज्यादा प्रभाव नहीं होता है।
अजजा वोट निर्णायक स्थिति में होते हैं और ऐसे में आदिवासी बाहुल्य डही क्षेत्र जो कांग्रेस का गढ़ है, वहां के वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं। हर बार कांग्रेस के उम्मीदवारों को यहां से इतने वोट मिलते आए हैं कि कुक्षी व निसरपुर क्षेत्र के मतदाताओं का झुकाव भाजपा के साथ होने के बाद भी कांग्रेस उम्मीदवार चुनाव जीतते रहे हैं। हालांकि पिछले चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी हनी बघेल को कुक्षी व निसरपुर क्षेत्र से भी लीड मिली थी। वे 42 हजार 768 वोटों से जीते थे लेकिन इनमें से 32 हजार की लीड डही क्षेत्र से मिली थी। कुक्षी और निसरपुर के मतदाता कभी किसी एक दल के साथ नहीं रहे हैं। वहीं 3 मौके ऐसे भी आए, जब डही क्षेत्र के मतदाताओं ने भी कांग्रेस की तरफ से मुंह फेर लिया था। यही वजह रही कि 1962 में जनसंघ, 1990 में भाजपा और 2011 में हुए उपचुनाव में भाजपा जीती थी।
फैक्ट फाइल -
2013 का परिणाम -
सुरेंद्रसिंह बघेल - कांग्रेस 89111
मुकामसिंह किराड़े - भाजपा 46343
पिछले चुनावों में मिले वोट -
पार्टी 2003 2008
कांग्रेस 55.91 48.36
भाजपा 40.21 37.90 (वोट प्रतिशत में)
जातीय समीकरण -
आदिवासी वोट निर्णायक स्थिति में हैं। पाटीदार और सिर्वी समाज भी अपनी पहचान रखते हैं।
2018 में संभावित प्रत्याशी -
भाजपा - रेलम चौहान, मुकामसिंह किराड़े (पूर्व विधायक), जयदीप पटेल, वीरेंद्रसिंह बघेल
कांग्रेस - सुरेंद्रसिंह हनी बघेल (विधायक), डॉ. गीतांजलि वर्मा (पूर्व नप अध्यक्ष डही), डॉ. दुर्गेश वर्मा, रामसिंह एस्के
कुल मतदाता : 223248
मतदान केंद्र : 270
पुरुष मतदाता : 112499
महिला मतदाता : 110737
थर्ड जेंडर : 12
क्षेत्र की बड़ी समस्याएं -
अस्पतालों में सुविधाएं नहीं हैं। फ्लोराइड ग्रसित गांवों में कई बार हफ्तेभर पानी की आपूर्ति नहीं हो पाती। सिलिकोसिस पीड़ितों को उचित हक नहीं मिल पाया। डही और निसरपुर क्षेत्र में सरदार सरोवर बांध के विस्थापितों का उचित और आदर्श पुनर्वास करना बड़ी चुनौती है।
पांच बड़े वादे और स्थिति -
अशिक्षा के कारण आदिवासी प्रदेश, देश और क्षेत्र स्तरीय के बड़े मुद्दों और वादों से अनजान रहते हैं। डही में कॉलेज खोलने की घोषणा मूर्त रूप नहीं ले सकी। मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद डही को तहसील और नगर परिषद का दर्जा मिला था। इसके बावजूद भाजपा 2008 का चुनाव हार गई थी।
वर्तमान में मैदानी स्थिति -
भाजपा के साथ ही अपनों से पार पाना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती -
सत्ता में नहीं होने के बावजूद कांग्रेस की स्थिति फिलहाल गांवों में ठीक है, लेकिन विधायक से कई कांग्रेसियों की पटरी नहीं बैठ रही। कांग्रेस नेता रामसिंह एस्के और शांतिलाल सोलंकी विधायक से दूरी बनाए हुए हैं। कांग्रेस से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़कर जीतने वाले वीरेंद्रसिंह बघेल ने विधायक पर उपेक्षा का आरोप लगाकर कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया है। वहीं डही के दमदार कांग्रेस नेता शैलेंद्र सोनी भी भाजपा में चले गए हैं। कांग्रेस को भाजपा के साथ ही अपनों से पार पाने की बड़ी चुनौती रहेगी।
आमने-सामने -
कई बड़े काम स्वीकृत होने के बाद भी भाजपा के लोगों ने अड़चनें पैदा कर रुकवा दिए। डही का कॉलेज भी इन्हीं में शामिल है। विपक्ष में होने के बावजूद जनता के लिए लगातार काम किया है। ज्वलंत मुद्दों को लेकर विधानसभा से लेकर सड़क तक जनता के हक में आवाज उठाई है और उठाता रहूंगा। - सुरेंद्रसिंह हनी बघेल, कांग्रेस
दूसरे नंबर पर रहे प्रत्याशी का मत विधायक ने कोई काम नहीं किया है। कोई एक भी बड़ी सौगात अगर उनकी नजर में हो तो वे बता दें। भाजपा की सक्रियता से ही जनता को लाभ मिल पा रहा है। मैंने और मेरे भतीजे डही जनपद अध्यक्ष पटेल ने कई काम कराए हैं। इस बार चुनाव में भाजपा बड़ा उलट-फेर करेगी। -मुकामसिंह किराड़े, भाजपा