गोपाल माहेश्वरी
डही (नईदुनिया न्यूज)। क्षेत्र में आदिवासी समाज में विभिन्ना प्रचलित परंपराओं के चलते शादी-ब्याह का खासा महत्व है, लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है जब अन्य समाजों की तरह ही आदिवासी समाज में भी ठंड में शादियां हो रही हैं। इसकी बड़ी वजह कोरोना है। दरअसल, आदिवासी समाज में अप्रैल-मई व आधे जून तक शादियां संपन्ना होती हैं। कारण है उस समय आदिवासी समाज फुर्सत में हो जाता है और गांव-गांव सैकड़ों विवाह संपन्ना होते हैं। हालांकि ठंड में अभी जो शादियां हो रही हैं, वे गर्मियों की शादियों की तुलना में महज 15 फीसदी है। 24 मार्च से कोरोना के लॉकडाउन की वजह से अप्रैल-मई में काफी शादियां रुक गई थी। ऐसे में उन शादियों की सुध आदिवासी समाज द्वारा ठंड के इस दिसंबर में ली गई है। वह भी ऐसे वक्त में जब खेतों में रबी की फसल ली जा रही है। खेती कार्य की व्यस्तता के बावजूद शादियां होना इस बात का इशारा है कि आदिवासी समाज के लोगों को भी अब इस बात का डर है कि कहीं ऐसा न हो कि आगे चलकर अप्रैल-मई में फिर कोरोना की वजह से वैवाहिक आयोजन न हो पाए।
जय ओंकार भीलाला समाज संगठन के तहसील अध्यक्ष डॉ. दुर्गेश वर्मा ने बताया कि समाज में हमेशा शादियां अप्रैल से जून तक होती है। ऐसा पहली बार हो रहा है जब कोरोना की वजह से रुकी हुई शादियां समाज के लोगों ने ठंड के मौसम में ही करनी शुरू कर दी हैै। उनका कहना है कि समाज में आगामी अप्रैल से जून में भी बड़ी तादाद में विवाह होंगे, लेकिन समाज के कई लोगों को इस बात की आशंका है कि कहीं ऐसा न हो कि कोरोना की वजह से आगे उन्हें कोई दिक्कत हो।
खेत खाली नहीं, फिर भी शादियां
यहां हम बता दें कि क्षेत्र के 62 आदिवासी गांव में अप्रैल से जून तक खुले खेत में वैवाहिक आयोजन होते हैं। खुले खेत में पंगत से लेकर बरातियों को ठहराया जाता है, लेकिन इस बार ठंड में हो रही शादियों में खेतों में रबी फसल की बोवनी की गई है। उसके बावजूद घर व अन्य स्थानों पर पहली बार व्यवस्था कर शादियां संपन्ना की जा रही है। क्षेत्र के आदिवासी फरवरी-मार्च में भगोरिया व होली की मस्ती के बाद विवाह के कार्यक्रम शुरू कर देते हैं और क्षेत्र में अप्रैल से जून तक में शादियों की दीवानगी चरम पर होती है, लेकिन इस बार ठंड में ही गांवों में शादियों की शहनाई बज रही है।
दुल्हन के घर ले गए गुड़़, ताकि रिश्तों में बनी रहे मिठास
आदिवासी समाज में हो रही शादियों में एक विशेषता यह भी है कि शादी के 7 से 10 दिन पले दूल्हे के स्वजन गुड़, बाजरा, गेहूं वगैरह दुल्हन के घर ले जाते हैं। जहां रीतिरिवाज के साथ दूल्हे के स्वजनों का शानदार स्वागत-सत्कार किया जाता है। इस परंपरा को गुड़ भेजने की परंपरा कहा जाता है। ग्राम थांदला में 14 दिसंबर को रवींद्र मुझाल्दा के विवाह को देखते हुए स्वजन गुड़ लेकर दुल्हन के घर पहुंचे व रस्म अदा कर शादी की तैयारी में जुट गए हैं।