प्रेमविजय पाटिल, धार। पुरातत्व की दुनिया में एक बहुत बड़ा नाम है पद्मश्री विष्णु श्रीधर वाकणकर जी का। उनकी जन्म शताब्दी के 100 वर्ष 4 मई 2020 को पूरे होने जा रहे हैं। भीम बैठका की खोज के साथ उनका धार और राजा भोज तथा भोजशाला से विशेष नाता रहा। दरअसल वे ऐसे महान व्यक्ति थे, जिन्होंने धार की भोजशाला से अंग्रेजों द्वारा ले जाई गई मां सरस्वती की प्रतिमा का न केवल दर्शन किए बल्कि उसका एक स्केच भी तैयार किया था। जिससे कि पूरा देश उनके माध्यम से जान पाया था कि राजा भोज के काल में कौन सी प्रतिमा धार की ऐतिहासिक भोजशाला में स्थापित थी।
इस संबंध में नईदुनिया ने उनके शिष्य और पुरातत्वविद् नारायण व्यास चर्चा की। उन्होंने बताया कि वर्ष 1968 में मेरे गुरु व पद्मश्री विष्णु श्रीधर वाकणकर अमेरिका गए थे। रास्ते में लंदन उतरे और उन्होंने वहां के संग्रहालय पहुंचकर राजा भोज के काल की मां सरस्वती की प्रतिमा के बारे में जानकारी निकालने का प्रयास किया। साथ ही लंदन में रखी प्रतिमा के बारे में विस्तार से जानकारी लेने की भी उत्सुकता दिखाई। वैसे तो राजा भोज को लेकर वाकणकर जी ने कई महत्वपूर्ण चीजें समाज के सामने लाकर रखी थी। उन्होंने कई महत्वपूर्ण खोज की लेकिन 1968 में उनकी जब लंदन संग्रहालय की यात्रा की थी, उसका विवरण उन्होंने जो मुझे बताया था। वह अपने आप में महत्वपूर्ण हैं।
अवकाश था उस दिन फिर भी किया जतन
पुरातत्वविद् नारायण व्यास ने बताया कि वाकणकर जी ने अपने संस्करण में इस बात को लिखा था कि- मैं लंदन जब विमान से उतरा तो सीधे ब्रिटिश म्यूजियम की ओर रवाना हुआ। वहां पहुंचकर मैंने देखा तो वहां का ऑफिस बंद था। अवकाश होने के कारण अधिकारी भी वहां नहीं थे। ऐसे में धार की भोजशाला में स्थापित राजा भोज की सरस्वती प्रतिमा को देखने के लिए मैंने प्रयास किया। लेकिन मुझे वह प्रतिमा कांच में से ही देखना पड़ी। ऐसे में मैं फोटो नहीं ले पाया। मैंने उसका बहुत ही बारीकी से अध्ययन किया। वाकणकर जी ने अपने पत्र में लिखा था कि जो प्रतिमा लंदन संग्रहालय में मैंने देखी थी उसकी ऊंचाई करीब 4 फीट है। और उसमें बालक का चित्र भी दिखाई दे रहा है जो संभवत राजा भोज और उनके पुत्र की थी। भोज पत्नी की तस्वीर होने का उन्होंने जिक्र किया था।
इस तरह से उन्होंने कई महत्वपूर्ण बात रखी। मूर्ति के नीचे श्लोक लिखा हुआ था। इसके बाद उन्होंने भारत आकर एक बहुत महत्वपूर्ण स्कैच तैयार किया जो आज भी उज्जैन के वाकणकर न्यास में रखा हुआ है। यह अपने आप में महत्वपूर्ण है। वाकणकर जी के भाई धार कॉलेज में इतिहास के प्राध्यापक थे और उन्हीं के कारण भी उनका धार आना-जाना लगा रहता था। वह कई बार बूढ़ी मांडू भी गए और वहां पर परमार कालीन वैभव की और सांस्कृतिक धरोहर के बारे में भी उन्होंने काफी अध्ययन किया। उसके बारे में भी बहुत कुछ लिखा था। वे चाहते थे कि बूढ़ी मांडू का भी संरक्षण हो।