राजगढ़ (नईदुनिया न्यूज)। धर्म की पृष्ठभूमि में धार्मिक व्यक्ति वही है, जिसे पाप करने से पहले डर लगने लगे। पाप करते समय दर्द हो और पाप करने के पश्चात दंड का अनुभव हो। पाप करना एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है, लेकिन पाप में रस लेना और पाप की प्रशंसा करना यह जीवन में दुर्गुणों व दुखों का प्रवेश करवाता है। यदि आपने कोई सिनेमा देखा है, तो इसमें पाप की आंशिक मात्रा हो सकती है, लेकिन उसी सिनेमा की प्रशंसा कर सैकड़ों लोगों को सिनेमा देखने के लिए प्रेरित कर दिया, तो पाप की प्रगाढ़ता बढ जाती है।
उक्त विचार मुनिराजश्री चंद्रयश विजयजी ने श्री राजेंद्र भवन में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा पाप प्रवृत्ति में लीन व्यक्ति दुखी होता है, क्योंकि पाप कर्म, मन, वचन एवं काया के द्वारा होता है। हमारे द्वारा बोले गए वचन, काया के द्वारा किया गया प्रत्येक कृत्य तथा मन के द्वारा विचारा गया प्रत्येक दुर्विचार, कर्मसत्ता की दृष्टि में पाप ही है। मुनिश्री ने कहा संसार में ऐसा कोई स्थान नहीं, जहां आप बिना किसी के देखे पाप कर सकते हैं। प्रत्येक स्थान पर आत्म-साक्षी व परमपिता परमेश्वर की दृष्टि देख रही है। प्रत्येक व्यक्ति को पाप प्रवृत्ति छोड़ परमात्मा की भक्ति, जीवों के प्रति दया, असहाय की सहायता व धर्म का पालन करना चाहिए।
चातुर्मासिक विहार के दौरान पहुंचे थे राजगढ़
आचार्यश्री हेमेंद्र सूरीश्वरजी के शिष्य एवं आचार्यश्री ऋषभचंद्र सूरीश्वरजी के आज्ञानुवर्ती मुनिराजश्री चंद्रयशविजयजी एवं मुनिश्री जिनभद्र विजयजी का 2021 का चातुर्मास नागदा जंक्शन में होना तय हुआ है, जिसके लिए मुनिश्री ने मोहनखेड़ा तीर्थ से 25 जुलाई को प्रथम विहार भोपावर के लिए किया था। यहां शांतिनाथ परमात्मा की भक्ति कर मुनिश्री राजगढ़ स्थित महावीरजी मंदिर पधारे एवं दर्शन-वंदन के बाद धर्म सभा हुई। इस अवसर पर मुनिश्री वैराग्ययश विजयजी भी मुनिश्री के साथ थे। गौरतलब है कि 18 जुलाई रविवार को मुनि भगवंत नागदा जंक्शन में चातुर्मास के लिए मंगल प्रवेश करेंगे।