गुना, अरविंद शर्मा। अंग्रेज सेना के दांत खट्टे करने वाली खींची राजवंश की रानी चंपावती के नाम पर गुना जिले के चाचौड़ा में स्थित किले को राज्य पुरातत्व विभाग संरक्षित कर रहा है। करीब साढ़े चार करोड़ रुपए खर्च कर इसका जीर्णोद्धार किया जाएगा। विभाग का दावा है कि प्रदेश में रानी के नाम पर यह पहला किला है, जिसे संरक्षित किया जा रहा है। करीब एक साल बाद पर्यटक इसे नए रूप में निहारेंगे।
पुरातत्व विभाग के अनुसार प्राचीन काल में रानियों के नाम पर महल हुआ करते थे, लेकिन 17वीं-18वीं शताब्दी में चाचौड़ा रियासत के खींची राजवंश के राजा विक्रम सिंह ने अपनी पत्नी रानी चंपावती के नाम पर यह किला बनवाया था। यह किला खींची राजवंश की वीरगाथा का साक्षी है। राज्य पुरातत्व विभाग ने इसके संरक्षण के लिए डीपीआर तैयार कर भोपाल भेजी थी, जिसे मंजूरी मिल गई।
60 हजार वर्गफीट में बना है किला
यह किला करीब 60 हजार वर्गफीट में बना है। इसका मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व की तरफ है, जो अब पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है। दूसरा प्रवेश द्वार पश्चिम की ओर है। प्रवेश द्वार पर भगवान गणेश रथ पर सवार है। किले में चार गोलाकार बुर्ज बने हैं। इसके परकोटे की ऊंचाई करीब 12 मीटर है। इस दोमंजिला किले में हवा महल, रानी महल, मोती महल और घुड़साल की अलग से व्यवस्था है। इन महलों का उपयोग रानी चंपावती करती थीं। वहीं कचहरी भवन में राजा विक्रम सिंह जनता की फरियाद सुनकर न्याय करते थे। उनके साथ रानी चंपावती भी बैठती थीं।
अंग्रेज सेना से किया था मुकाबला
राजा के अलावा रानी चंपावती भी युद्ध से लेकर ज्ञान कौशल में महारथ रखती थीं। अंग्रेज सेना के तत्कालीन अफसर जॉन बेटिस ने राजा विक्रम सिंह को अंग्रेजों की गुलामी स्वीकारने को कहा था, लेकिन राजा विक्रम सिंह ने युद्ध का निर्णय लिया। युद्ध में रानी चंपावती ने भी राजा विक्रम सिंह के साथ अपना पराक्रम दिखाया। भीषण युद्ध में राजा विक्रम सिंह मारे गए। तब अंग्रेज सेना किले में घुस आई। यह देखकर रानी चंपावती ने मोती महल में बनी करीब 50 मीटर गहरी बावड़ी में कूदकर प्राण त्याग दिए थे। उनके बाद अंग्रेजों ने किले पर कब्जा कर लिया था।
कर रहे हैं संरक्षण
प्रदेश में अब तक रानियों के नाम पर बने महल संरक्षित किए जाते थे, लेकिन अब रानी चंपावती के नाम पर बने किले को संरक्षित किया जा रहा है। यह प्रदेश में किसी भी रानी के नाम पर पहला किला है। करीब 4 करोड़ 50 लाख रुपए की लागत से किले को पुराना स्वरूप दिया जाएगा। एक साल बाद पर्यटक यहां का वैभव निहार सकेंगे
- एसआर वर्मा, डिप्टी डायरेक्टर, राज्य पुरातत्व विभाग, ग्वालियर